Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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७९६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
- जीवकाण्ड ११३, ३९४, ५८२, ६३४, ६७७
- जीवतत्त्वप्रदीपिकाटीका ३९४, ४१९, ६३३, ६४२, ६९६, ६९७ - प्रस्तावना (पं० कैलाशचन्द्रशास्त्रीजीवकाण्ड / भाग १) ६९६ गौडपाद (शंकराचार्य के गुरु) ४७२, ४७५ ग्रन्थपरीक्षा (पं० जुगलकिशोर मुख्तार) १३७
च
चन्दणन्दिभटार २८३, २८४, २८७ चन्दना-मृगावती ६१६-६१८, ६२३ चन्देरी (बुन्देलखण्ड) ८ चन्द्रगुप्त मौर्य (सम्राट् ) ४४, ५३७, ५३९ चन्द्रर्षि महत्तर (श्वे०) ७५२
चर्चासागर (भट्टारकीय ग्रन्थ) १३२, १३७ चामुण्डराय (गंगनरेश राजमल्ल के महामंत्री) ९३
चामुण्डरायपुराण (त्रिषष्टिलक्षण महापुराण) ९३ चारणार्द्धि (कुन्दकुन्द ) ३५ चारित्तपाहुड २०२, २११, २२०, २८०, ४२१ चारित्र ६०४
- सामायिक ( गुणस्थान ६, ७, ८, ९ ) - छेदोपस्थापना (गुण० ६, ७, ८, ९ ) - परिहारविशुद्धि (गुण० ६, ७) - सूक्ष्मसाम्पराय (गुण० १० ) - यथाख्यात (गुण० ११, १२, १३, १४) ६०४
चारित्रवृद्धि गुणस्थानक्रम से ६०४ चारुकीर्ति भट्टारक ९५, ९६, १४८ चित्तौड़ ९
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चित्रकूटपुर १८३ चिदरवल्लि - अभिलेख ४३ चिमनलाल पण्डित (जयपुर) २२ चैत्यगृह-प्रतिमादि ३०४
छ
छान्दोग्योपनिषद् ३३५, ४४३
ज
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (जंबुदीवपण्णत्ती) १८६,
३२७, ३२८
जम्बूस्वामी ५६७
जम्बूस्वामिचरित्र ५२०
जयधवलाटीका ५३, २४०, २७८, २८२,
३७३, ६५१, ६८१, ६८२, ७००, ७०१, ७२७, ७३१, ७३४, ७३५, ७३८, ७७०
जयसागर मुनि (भट्टारकपट्ट पर अभिषिक्त)
११५
जयसेन आचार्य १८४, १८८, १९०, २९३, २९६, २९७
जहाछंद (यथाछन्द = पासत्थादि पाँच भ्रष्ट मुनियों में से एक) ५९
जिनचन्द्र प्रथम (दि० आचार्य) ७, १४, ४७,
३११
जिननन्द गणी (आर्य ) ४९२ जिनपालित ३११
जिनप्रतिमाभास ६०१
जिनमूर्ति - प्रशस्तिलेख (कमलकुमार जैन ) ३३, ३४, ३६, ६३ ६४
जिनलिंग ५९८
जिनलिंगकृत पाप ६२
जिनलिंगाभास ५९८, ६०१, ६०२
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