Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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आत्माराम (उपाध्याय, श्वे. मुनि ) ३६२ आदिपुराण ६१, १८४, १८६ आदिसागर आचार्य, अंकलीकर ११५ आध्यात्मिक विकासक्रम ३८५, ३८६ आध्यात्मिक विशुद्धि की अवस्थाएँ ३९० आप्तपरीक्षा (विद्यानन्द स्वामी) ५०२,
५२२ आप्तमीमांसा (देवागम स्तोत्र) ५०५, ५०८, ५२३, ५२७
आरातीय ४९३ आरातीयसूरि-चूडामणि (अपराजितसूरि की उपाधि) ४९३
आराधना ४९२
आराधनाकथाकोश ( नेमिदत्त) ४९८,
५००
आराधनानिर्युक्ति २०० आर्यकृष्ण (बोटिक शिवभूति के गुरु )
५१०
आर्यकुल- भद्रान्वय ४१७
आर्यनन्दिल ( श्वे.) २४१
आर्यभद्र ४१४, ४१६
आर्यमंक्षु-नागहस्ती (दिगम्बर) २४०, २४१,
७१३, ७१५, ७२०, ७३०, ७३१, ७३४, ७३७, ७५६
आर्यमंगु - आर्यनागहस्ती (श्वे.) २४१, ७१३, ७३६, ७३७
आर्यरक्षित (श्वे. आचार्य) २४१ आर्य श्याम (प्रज्ञापनासूत्र के कर्त्ता) ७२० आवश्यकचूर्णि ५८५, ६१४, ६१६, ६३७ आवश्यकनिर्युक्तिं (भद्रबाहु - द्वितीय, श्वे. )
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शब्दविशेष- सूची / ७९१
४१५, ४९४, ५०३, ५२५, ५२८, ५२९, ५३१, ५३२, ५६२, ५७५, ५८५, ६१६
- हारिभद्रीयवृत्ति ५८९, ६१७ आवश्यकमूलभाष्य ४९०, ४९१, ४९४, ५०१
आवश्यक सूत्र - चूर्णि ५०१
आशाधर (पण्डित) ४०
Aspects of Jainology - Vol. II ३२९
— Vol. III १८६, १८७, २८६, ४५२४५६, ४५८, ४५९, ४६०, ४६१, ४६२, ४६४-४६८, ४७२, ४७३, ४७७, ४७९, ४८२, ४८३
इ
इण्डियन ऐण्टिक्वेरी (The Indian An
tiquary)
· Vol. XX (October, 1891) ६,
७, ९, १२, १४-३०, ४५, ४६, ४८,
४९, १९६, १९७, २३९, २९२, ३२५, ३२६
— Vol. XXI ( March, 1892) १८२२, २८-३०, ३२
- Vol. XIV (January, 1885) २६१, २९२
इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली ४३ Indian Philosophy, Vol. II, (S. Rādhākrishnan) : ४४६ इन्द्रनन्दी (श्रुतावतारकर्त्ता) १८३, १८६, १९० इष्टोपदेश (पूज्यपाद स्वामी) २६६, ४७१,
४७४
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