________________
अ० १२ / प्र० ३
कसायपाहुड / ७४७
कि यापनीयों को अपनी श्वेताम्बर - यापनीय- मातृपरम्परा से उत्तराधिकार में कसा पाहु प्राप्त होने की कथा सर्वथा मनःकल्पित है ।
यापनीयपक्ष
१०
सित्तरीचूर्णि - निर्दिष्ट कसायपाहुड गुणधरकृत
“श्वेताम्बरपरम्परा के ग्रन्थ सित्तरीचूर्णि में कसायपाहुड का स्पष्टरूप से निर्देश मिलता है, जैसे
क—“तं वेयंतो बितिय किट्टीओ तइय किट्टीओ य दलियं घेत्तूणं सुहुमसांपराइय किट्टीओ करेइ तिसिं लक्खणं जहा कसायपाहुडे ।"
ख - " एत्थ अपुव्वकरण अणियट्टि अद्धासुअणगाइ वत्तव्वगाई जहा, कसायपाहुडे, कम्मपगडि संगहणीए व तहा वत्तव्वं । " ( 'सित्तरी' पत्र ६२ / २)।
44
'उक्त उद्धरणों से यह तो निश्चित ही सिद्ध हो जाता है कि सित्तरीचूर्णिकार कसायपाहुड से परिचित हैं और वे उसे अपनी ही परम्परा के ग्रन्थ के रूप उद्धृत करते हैं ।" (जै. ध. या.स./ पृ. ८५-८६) ।
दिगम्बरपक्ष
मान्य ग्रन्थलेखक का यह कथन सर्वथा सत्य है कि सित्तरीचूर्णिकार ने कसायपाहुड का स्पष्टरूप से निर्देश किया है, इससे सिद्ध होता है कि वे कसा पाहु से परिचित हैं। किन्तु उन्होंने उसे अपनी ही परम्परा के ग्रन्थ के रूप में उद्धृत किया है, यह निष्कर्ष मान्य ग्रन्थलेखक ने किस आधार पर निकाला, यह समझ में नहीं आया । यदि किसी जैन ग्रन्थ में किसी बौद्ध या वैदिक ग्रन्थ के नाम का उल्लेख किया गया हो या उससे कोई उद्धरण दिया गया हो, तो क्या वह बौद्ध या वैदिक ग्रन्थ जैनपरम्परा का ग्रन्थ मान लिया जायेगा ? कदापि नहीं। इसी प्रकार श्वेताम्बरग्रन्थ सित्तरीचूर्णि में दिगम्बरग्रन्थ कसायपाहुड का उल्लेख होने से वह श्वेताम्बर - परम्परा का ग्रन्थ नहीं माना जा सकता। पूर्वोक्त प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है कि श्वेताम्बरपरम्परा में किसी श्वेताम्बराचार्य द्वारा अर्धमागधी में रचित कसायपाहुड का कभी अस्तित्व ही नहीं रहा, तब सित्तरीचूर्णि में निर्दिष्ट कसायपाहुड श्वेताम्बरपरम्परा का ग्रन्थ कैसे हो सकता है? स्वयं सित्तरीचूर्णिकार ने यह नहीं कहा कि वे अपनी ही परम्परा के कसायपाहुड का उल्लेख कर रहे हैं। अतः यह निष्कर्ष प्रामाणिक नहीं है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org