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६१८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०११/प्र.४
यह दृष्टान्त भावप्रतिक्रमण (क्षमायाचना) और क्षमा का फल बतलाने के लिए दिया गया है। मृगावती ने भावप्रतिक्रमण किया था और चन्दना ने उसे क्षमा किया था। इसी के फलस्वरूप दोनों को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
इस कथा में त्रिगुप्तिरूप शुक्लध्यान के बिना ही, मात्र प्रतिक्रमण और क्षमादानरूप शुभोपयोग के द्वारा चार घाती कर्मों का क्षय एवं केवलज्ञान की उत्पत्ति बतलायी गयी है। तथा मोहनीयकर्म के क्षय के बाद भी मृगावती में चन्दना के प्रति राग का सद्भाव दर्शाया गया है, जिसके फलस्वरूप वह साँप से रक्षा करने के लिए चन्दना का हाथ हटाती है।
४.४.३. बुहारी लगानेवाली वृद्धा-एक वृद्धा की कथा भी श्वेताम्बर समाज में प्रसिद्ध है। वह उपाश्रय में बुहारी लगाते हुए (एकत्वादि) भावना भाने से केवलज्ञानी हो गई और मोक्ष प्राप्त कर लिया।
४.४.४. गुरु को कन्धे पर बैठाकर ले जानेवाला शिष्य-एक कथा ऐसी है कि एक नवविवाहित तदनन्तर नवदीक्षित शिष्य अपने गुरु चण्डरुद्राचार्य को कन्धे पर बिठाकर जा रहा था। ऊँची-नीची भूमि पर उसके पैर पड़ने से गुरु को हिचकोले लगते थे, जिससे क्रोध में आकर वे शिष्य को दण्ड मारते थे। शिष्य ने चलतेचलते आत्मनिन्दा की, जिससे गुरु को कन्धे पर ले जाते हुए ही उसे केवलज्ञान हो गया। (श्री चण्डरुद्राचार्य / जिनशासन की कीर्तिगाथा / कथा क्र.३)।
४.४.५. ढंढण ऋषि-द्वारिकानगरी में श्रीकृष्ण वासुदेव की ढंढण रानी से उत्पन्न ढंढणकुमार अतिशय रूपवान् थे। एक बार नेमिनाथ प्रभु की देशना सुनकर ढंढणकुमार को वैराग्य हो गया और गुरुजनों की आज्ञा लेकर उन्होंने चारित्र ग्रहण कर लिया। उन्होंने प्रभु के समक्ष प्रतिज्ञा की कि मैं जब भी भिक्षा के लिए जाऊँगा, तब जो गृहस्थ मुझे मेरे प्रभाव से भिक्षा देगा, उसी की भिक्षा ग्रहण करूँगा। यह प्रतिज्ञा करके ढंढण ऋषि भिक्षा के लिए गाँव में गये, परन्तु वहाँ उनको किसी ने थोड़ी-सी भी भिक्षा नहीं दी। लौटकर उन्होंने भगवान् से पूछा-“हे भगवन्! मुझे किस कर्म के उदय से भिक्षा प्राप्त नहीं हुई?"
प्रभु ने उत्तर दिया-"पूर्वभव में मगधदेश में धान्यपुरक गाँव में पाराशर नामक एक कुलपुत्र था। वह राजा के खेत में खेती कराता था। उसके अधिकार में पाँच ७०. "तया च तथैव क्षमणेन केवलं प्राप्तं सर्पसमीदात् करापसारणव्यतिकरण, प्रबोधिता प्रवर्तिन्यपि
कथं सर्पोऽज्ञायीति पृच्छन्ती तस्याः केवलं ज्ञात्वा मृगावती क्षमयन्ती केवलमाससाद।" कल्पसूत्र/
व्याख्यान ९/ पृष्ठ १९२/'दिगम्बर जैन सिद्धान्त दर्पण' (द्वितीय अंश)/ पृष्ठ २३३ पर उद्धृत। ७१. दिगम्बर जैन सिद्धान्त दर्पण / द्वितीय अंश / पृ.२३४ से उद्धृत।
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