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तृतीय प्रकरण यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता
जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय ग्रन्थ के लेखक ने आचार्य धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबलि को स्वकल्पित उत्तरभारतीय सचेलाचेल निग्रन्थ परम्परा या यापनीयपरम्परा का आचार्य सिद्ध करने के लिए जो हेतु प्रस्तुत किये हैं, उनमें से कुछ तो असत्य हैं अर्थात् उनका अस्तित्व ही नहीं है। और शेष हेत्वाभास हैं अर्थात् वे भले ही हेतु जैसे प्रतीत होते हैं, किन्तु हेतु नहीं हैं, अहेतु हैं। यद्यपि जिसका अस्तित्व नहीं है, वह भी स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है, तथापि उसकी असत्यता का त्वरित बोध कराने के लिए उसे 'असत्य' विशेषण से ही प्रस्तुत ग्रन्थ में अभिहित किया जा रहा है। उक्त हेतुओं में से कौन असत्य है और कौन हेत्वाभास है। इसका निर्णय आगे प्रस्तुत है, यापनीयपक्ष-समर्थक हेतु का निर्देश यापनीयपक्ष शीर्षक के नीचे तथा उसकी असत्यता या हेत्वाभासता का प्रकाशन दिगम्बरपक्ष शीर्षक के नीचे द्रष्टव्य है।
दिगम्बरपट्टावली में नाम न होना दिगम्बर न होने का हेतु नहीं
यापनीयपक्ष
यापनीय पक्षधर विद्वान् लिखते हैं-"इतना तो निश्चित है कि धरसेन मूलसंघीय दिगम्बर-परम्परा से भिन्न किसी अन्य परम्परा के आचार्य रहे हैं। तिलोयपण्णत्ती, हरिवंशपुराण और अभिलेखीय पट्टावली १९ में धरसेन का नामोल्लेख न होना भी यह सूचित करता है कि या तो वे किसी भिन्न परम्परा के थे या फिर इनमें सूचित आचार्यों से पर्याप्त परवर्ती हैं।" (जै.ध.या.स./ पृ. ९२)। दिगम्बरपक्ष
कुन्दकुन्द, स्वामिकुमार, समन्तभद्र, पूज्यपादस्वामी जैसे सुप्रसिद्ध दिगम्बराचार्यों के नाम भी तिलोयपण्णत्ती और हरिवंशपुराण में निर्दिष्ट आचार्यपरम्परा में नहीं मिलते, पर इनके दिगम्बर होने में उक्त यापनीयपक्षधर ग्रन्थलेखक को भी सन्देह नहीं है। अतः दिगम्बर-ग्रन्थोल्लिखित पट्टावलियों में धरसेन के नाम का निर्देश न होने से यह सिद्ध नहीं होता कि वे दिगम्बर नहीं थे। फलस्वरूप धरसेन को दिगम्बरपरम्परा
१९.जैन शिलालेख संग्रह / माणिकचन्द्र / भाग १ / ले. क्र.१ एवं १०५ ।
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