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अ०१०/प्र०५
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ४२९ में वर्णित गुणश्रेणिनिर्जरा की दस अवस्थाओं के आधार पर माना है (देखिये, इसी प्रकरण का शीर्षक १), वहाँ अब वे श्वेताम्बर-आगम भगवतीसूत्र एवं प्रज्ञापनासूत्र में मोक्षमार्ग से असम्बद्ध मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, अविरत, विरताविरत
आदि तेरह अवस्थाओं का यहाँ-वहाँ उल्लेख प्राप्त होने से इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि 'गुणस्थानसिद्धान्त के बीज प्रथमतः श्वेताम्बर आगमसाहित्य में ही रहे हैं और उन्हीं के आधार पर आचारांग-नियुक्ति, तत्त्वार्थसूत्र, षट्खण्डागम आदि में कर्मनिर्जरा (गुणश्रेणिनिर्जरा) की दस अवस्थाओं का और उनके आधार पर गुणस्थानसिद्धान्त का विकास हुआ है।' यह निष्कर्ष सर्वथा कपोलकल्पित है। इसका निरसन नीचे किया जा रहा है।
निरसन १. जैसा कि पूर्व में कहा गया है, गुणस्थानसिद्धान्त के विकास की अवधारणा ही मिथ्या है। इसे पुनः समझने के लिए गुणस्थानसिद्धान्त किसे कहते हैं, इस पर पुनः दृष्टिपात कर लिया जाय। वीरसेन स्वामी ने मोक्ष के सोपानों को गुणस्थान कहा है। अर्थात् सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र की उत्तरोत्तर विकसित अवस्थाओं का नाम गुणस्थान है। श्वेताम्बराचार्य हरिभद्रसूरि ने ज्ञानदर्शनचारित्ररूप परम्परा को 'गुणस्थान' शब्द से अभिहित किया है। (देखिये, इसी प्रकरण का पूर्व शीर्षक २.४)। श्वेताम्बरीय 'कर्मग्रन्थ' के द्वितीय कर्मग्रन्थ की टीका में कहा गया है
"तत्र गुणा ज्ञानदर्शनचारित्ररूपा जीवस्वभावविशेषाः, स्थानं पुनरत्र तेषां शुद्धिविशुद्धिप्रकर्षापकर्षकृतः स्वरूपभेदाः, तिष्ठन्त्यस्मिन् गुणा इति कृत्वा। गुणानां स्थानं गुणस्थानम्।" (अभिधानराजेन्द्र कोष / भा.३ / पृ.९१४)।
__ अनुवाद- "जीव के ज्ञानदर्शनारित्ररूप स्वभावविशेष गुण कहलाते हैं। उनकी शुद्धि और विशुद्धि के प्रकर्ष और अपकर्ष से जनित स्वरूपभेदों का नाम स्थान है, क्योंकि इसमें गुण स्थित रहते हैं। गुणों का स्थान गुणस्थान है।" ____ श्वेताम्बरग्रन्थ प्रवचनसारोद्धार (द्वार ९०) में गुणस्थान की परिभाषा इस प्रकार की गयी है-"परमपदप्रासादशिखरारोहणसोपानकल्पानि गुणस्थानानि।" (अभि. रा. कोष / भा.३ / पृ.९१३)। अर्थात् जो परमपद-रूप (सिद्धपदरूप) प्रासाद (महल) के शिखर पर आरोहण के लिए सोपान के समान होते हैं, वे गुणस्थान कहलाते हैं।
इन परिभाषाओं का सार यह है कि मोक्षमार्गभूत रत्नत्रय (सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र) के क्रमिक विकास की चौदह अवस्थाओं का नाम गुणस्थान है। यह अविरतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशान्तमोह, क्षीणमोह आदि संज्ञाओं से स्पष्ट
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