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२ - अहन्नीति — यह श्वेताम्बरी ग्रन्थ है । इसके सम्पादक का नाम और समय इस में नहीं दिया गया है किन्तु यह कुछ अधिक कालीन ज्ञात नहीं होता है । परन्तु इसके अन्तिम श्लोक में सम्पादक ने स्वयं यह माना है कि जैसा उसने सुना है वैसा लिपिबद्ध किया ।
३ - वर्धमान नीति- इसका सम्पादन श्री अमितगति आचार्य ने लगभग संवत् १०६८ वि० या १०११ ई० में किया है । यह राजा मुख के समय में हुए थे । इसके और भद्रबाहु संहिता के कुछ लोक सर्वथा एक ही हैं। जैसे ३० - ३४ जो भद्रबाहु संहिता में नम्बर ५५-५८ पर उल्लिखित हैं। इससे विदित होता है कि दोनों पुस्तकों के रचने में किसी प्राचीन ग्रन्थ की सहायता ली गई है। इससे इस बात का भी पता चलता है कि भद्रबाहु संहिता यद्यपि वह लगभग ३२५ वर्ष की लिखी है तो भी वह एक अधिक प्राचीन ग्रन्थ के आधार पर लिखी गई है जो सम्भवत: ईसवी सन् के कई शताब्दि पूर्व के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु स्वामी भद्रबाहु के समय में लिखी गई होगी, जैसा उसके नाम से विदित होता है । क्योंकि इतने बड़े ग्रन्थ में वर्द्धमान नीति जैसी छोटी सी पुस्तक की प्रतिलिपि किया जाना समुचित प्रतीत नहीं होता है ।
४ -- इन्द्रनन्दी जिन संहिता - इसके रचयिता वसुर्नान्द इन्द्रनन्दि स्वामी हैं । यह पुस्तक भी उपासकाध्ययन अंग पर निर्भर है । विदित रहे कि उपासकाध्ययन अंग* लोप हो गया है और अब केवल इसके कुछ उपाङ्ग अवशेष हैं ।
५ त्रिवर्णाचार - संवत् १६६७ वि० के मुताबिक १६१९ ई० की बनी हुई पुस्तक 1 इसके रचयिता भट्टारक सोमसेन स्वामी
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* इस अंग के विषयों की सूची और वर्सन के निमित्ति रा० ब० बा० जुगमन्दिर लाल जैनी की किताब श्राउट लाइन्ज़ श्राफ जैनिज्म देखनी चाहिए ।
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