Book Title: Jain Law
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Digambar Jain Parishad

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Page 11
________________ पति के भाई भतीजे उसको प्रसन्न रक्खें और उसका आदर और विनय करें तो वह उनको सबका सब धन दे सकती है। __ इस कारण जैन-लॉ की विशिष्टता सूर्यवत् कान्तियुक्त है । इसमें विरोध करना मूर्खता का कारण है। यह भी ज्ञात रहे कि यदि कहीं ऐसा प्रकरण उपस्थित हो कि पुरुष को अपनी स्त्री पर विश्वास नहीं है तो उसका भी प्रबन्ध जैन-लॉ में मिलता है। ऐसे अवसर पर वसीयत के द्वारा कार्य करना चाहिए और स्वेच्छानुकूल अपने धन का प्रबन्ध कर देना चाहिए। यदि कोई स्त्रो दुराचारिणी है तो वह अधिकारिणी नहीं हो सकती है। यह स्पष्टतया जैन-लॉ में दिया हुआ है। मेरे विचार में यदि ध्यान से देखा जायगा तो सम्पत्ति के नष्ट होने का भय नये नवाबों से इतना अधिक है कि जैन-लॉ के रचयिताओं से आक्रोश का अवसर नहीं रहता है। ___ अस्तु जो सज्जन अपने धर्म से प्रेम रखते हैं और उसके स्वातन्त्र्य को नष्ट करना नहीं चाहते हैं और जिनको जैनी होने का गौरव है उनके लिये यही आवश्यक है कि वे अपनी शक्ति भर चेष्टा इस बात की करें कि विरुद्ध तथा हानिकारक अजैन कानूनों की दासता से जैन-लॉ को मुक्त करा दें। गुलामी में आनन्द माननेवालं सज्जनों से भी मेरा अनुरोध है कि वे आँखें खोलकर जैन-लॉ के लाभों को समझे और व्यर्थ की बातें बनाने वा कलम चलाने से निवृत्त होवें। सी० आर० जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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