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वास्तु- स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई०
[ भाग 4 पार्श्वनाथ, महावीर और पद्मावती की मूर्तियाँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं । पद्मावती देवी अपने वाहन सिंह के ऊपर पद्मासन पीठ पर ग्रासीन हैं। कुछ अनुचर भी पद्मावती के दोनों श्रोर अंकित हैं । वास्तव में, यहाँ की सभी प्रमुख मूर्तियों पर भक्त या उड़ते हुए विद्याधर अंकित हैं। अधिकांश तीर्थंकर-मूर्तियों के मस्तक पर छत्रत्रय हैं और वे सत्वपर्यंक - मुद्रा में आसीन हैं, किन्तु पार्श्वनाथ की मूर्ति नाग की त्रिफणावली के नीचे सौम्य खड्गासन - मुद्रा में अंकित की गयी है ।
प्राय-नरेश विक्रमादित्य वरगुण ( लगभग ८८५ - ९२५ ई० ) का एक अभिलेख यहाँ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अभिलेख है जिसमें तिरुच्चारणत्तुमलै के भटारियार को दिये गये कुछ स्वर्ण आभूषणों के उपहार का उल्लेख है । सभी पूजार्थ मूर्तियों के आसन के नीचे वट्टेजुत्तु लिपि में संक्षिप्त अभिलेख हैं जिनमें दाता के नाम और स्थान का उल्लेख है । इन अभिलेखों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि यह जैन प्रतिष्ठान कम-से-कम तेरहवीं शताब्दी के मध्य तक सक्रिय रहा, जिसके पश्चात् इसे भगवती मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया ।
एर्णाकुलम जिले में पेरुंबवुर के निकट कल्लिल में एक और जैन शैलाश्रय है ( चित्र १४० क ) ; इसे भी परवर्ती काल में भगवती मंदिर के रूप में परिवर्तित कर दिया गया ( चित्र १४० ख ) । इस शैलाश्रय के मुखभाग पर महावीर की एक अपूर्ण पद्मासनस्थ मूर्ति उत्कीर्ण है । इसके अतिरिक्त, भगवती मंदिर की पृष्ठ - भित्ति पर सिंहासन पर आसीन महावीर की मूर्ति सत्वपर्यंक - मुद्रा में उत्कीर्ण है । इस मूर्ति में भी महावीर के मस्तक पर छत्रत्रय का अंकन है । उनके पीछे दो अनुचर दिखाये गये हैं जिनमें से एक चमर धारण किये हुए हैं। धातु-पत्र से मढ़ी हुई पद्मावती की पाषाण मूर्ति उक्त महावीर - मूर्ति के पास स्थापित है और उसे अब भगवती के रूप में पूजा जाता है 2 ।
केरल में श्राश्रयों के प्रायः समकालीन कुछ निर्मित मंदिरों के खण्डहर मिलते हैं, जिनमें से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण मंदिर पालघाट जिले में अलथुर के निकट गोदापुरम में है । शाक्कयार भगवतीमंदिर के स्थानीय नाम से प्रसिद्ध इस स्थान से दो जैन मूर्तियाँ मिली थीं जो अब त्रिचूर संग्रहालय में हैं । महावीर की मूर्ति सत्वपर्यंक - मुद्रा में सिंहासन पर ग्रासीन है और उसके मस्तक पर छत्रत्रय का अंकन है । पादपीठ पर चार अर्ध-स्तंभों के मध्य सामने मुख किये तीन सिंह लांछन के रूप में उत्कीर्ण हैं । दोनों ओर दहाड़ते हुए सिंहों के ऊपर एक-एक अनुचर दायें हाथ में चमर लिये हुए अंकित किया गया है । बायाँ हाथ कटि पर है। पार्श्वनाथ की मूर्ति युगल - पत्रोंवाले पद्मपुष्पों से निर्मित पीठ पर कायोत्सर्ग - मुद्रा में अंकित है और उसके मस्तक पर नाग की त्रिफणावली है । नाग की पूँछ पादपीठ और जंघाओं को लपेटती हुई पीछे की ओर जाती है । महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कल्लिल और चित
1 राव (टीए गोपीनाथ). चितराल इन्स्क्रिप्शन ऑफ़ विक्रमादित्य वरगुण. त्रावनकोर प्राक्यिॉलॉजिकल सीरीज. 1, भाग 12. 1912. पृ 193-94.
राव, पूर्वोक्त, 1919, पृ 130.
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