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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई०
[ भाग 5 उपर्युक्त से भी महत्त्वपूर्ण हैं--छत पर विभिन्न तीर्थंकरों के जीवनों के विस्तारपूर्वक उत्कीर्ण दश्य (चित्र १९३)जो उक्त दोनों मंदिरों में, तथा लगभग १०३२ ई० में निर्मित कुंभरिया स्थित महावीर-मंदिर में अंकित किये गये हैं। इस मंदिर की एक छत पर चौबीस तीर्थंकरों में से प्रत्येक के माता-पिता की प्राकृतियोंवाले लंबे पट भी हैं जिनमें उनके नाम भी उत्कीर्ण किये गये हैं (चित्र १६६)। कुंभरिया-मंदिर में एक पट में भूतकाल के तीर्थंकरों तथा भविष्य के प्रारों का भी अंकन किया गया है। वस्तुपाल और तेजपाल द्वारा आबू पर्वत पर निर्मित मंदिर में बहत्तर तीर्थंकरों के अंकन से यक्त एक पट सुरक्षित है। अश्वावबोध की कथा तथा शकुनिका-विहार का उद्धृति के रूप में उरेखन करने योग्य पाषाणखण्ड अाबू तथा कुंभरिया में पाये जाते हैं। इस प्रकार जैन जातकों तथा अन्य जैन कथानों की उद्धृतियों के अंकन का चलन इस युग में बहुत हुआ। देवताओं, मनुष्यों, स्त्रियों, पशुओं, वृक्षों आदि का संगमरमर की लघु मूर्तियों के रूप में अंकन-युक्त कुंभरिया-मंदिर के ये पट (चित्र १८६) श्रेष्ठ कला-कृतियाँ हैं। ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दियों में इस प्रदेश के कलाकार कोमल संगमरमर को सूक्ष्मता से तराशने में बड़े प्रवीण थे, जैसा कि विमल और लुणवसहियों के सभा-मण्डपों के गुंबदों तथा चौलुक्य-युग के जैन और अ-जैन देवालयों के अन्य अनेक वितानों पर की गयी अत्यंत सुंदर कारीगरी से स्पष्ट है।
बारहवीं और परवर्ती शताब्दियों की प्राकृति-कला (मूर्तिकला), जिसमें सूक्ष्म अलंकरण की प्रचुरता है, नयनाभिराम तो है किन्तु वह धीरे-धीरे अपना प्रकृतवाद, शोभा और सौंदर्य खोती जा रही थी। जो भी हो, कुमारपाल के युग की मानव-आकृतियाँ जहाँ हृष्टपुष्ट, बलिष्ठ तथा निश्चल हैं (तुलना कीजिए - विमल-बसही की भ्रमती में वज्रांकुशी महाविद्या, चित्र १९७), वहीं दूसरी ओर वस्तुपाल तथा तेजपाल के युग की प्राकृतियाँ एक सीमा तक रूप की शोभा और कोमलता दर्शाती हैं। विशेषकर स्त्री-प्राकृतियों तथा मानव-मुखाकृतियों के अंकन में। विमल-वसही की छत पर अंकित
आकृति--शायद वह अंबिका की है-कला का एक सुंदर उदाहरण है (चित्र १८७ क) । वृक्षों का अंकन भी ध्यान देने योग्य है।
विमलशाह के युग की मूर्तिकला उच्चकोटि की कारीगरी प्रदर्शित करती है । आबू पर विमल ने जो निर्माण कराया था, उसका इस समय यद्यपि बहुत कम भाग शेष बचा है तथापि कुंभरिया स्थित महावीर-मंदिर की कला-सौभाग्य से वह अधिक अच्छी तरह सुरक्षित रह सकी हैं-अध्ययन के लिए महत्त्वपूर्ण है । वास्तव में, आबू और कुंभरिया में काम करनेवाले कलाकारों के सामने अपने केंद्रों के लिए उस चंद्रावती नगर की मूर्तिकला विषयक परंपराएँ थीं, जो प्राबू से लगभग ८ किलोमीटर दूर था और अब खण्डहरों के रूप में है। चंद्रावती की जैन मूर्तिकला की एक श्रेष्ठतम कृति, जो बारहवीं शताब्दी के लगभग की है, इस समय सौभाग्य से ज्यूरिख के राइट्सबर्ग संग्रहालय में सुरक्षित है। विमल-युग की तथा विमलशाह की हस्तिशाला से प्राप्त एक सुंदर नायिका या अप्सरा की मूर्ति का चित्र यहाँ दिया गया है (चित्र १९८ क)।
इस युग की कला का एक महत्त्वपूर्ण नमूना, जो सिंध के थार पार कर जिले के वरावन नामक स्थान से प्राप्त हुआ था, अब बंबई के प्रिंस आफ वेल्स संग्रहालय में सुरक्षित है। खड़ी हुई
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