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चित्रांकन एवं काष्ठ-शिल्प
[ भाग 7 धरणेंद्र ने ऋषभदेव की प्रथम चर्या के रूप में उन्हें विद्याधर जगत का आधिपत्य अर्पित किया। ये सभी जीवन-चरित्र संबंधी गाथाएँ अत्यंत विस्तार के साथ अंकित की गयी हैं (चित्र २६३) ।
तीर्थकर नेमिनाथ के भतीजे कृष्ण की जीवन-गाथा में दर्शाया गया है कि बलदेव ने नवजात शिशु को ग्रहण कर, यमुना नदी को पार किया, तथा उस शिशु को नंदगोप को दिया। कृष्ण की बाल-लीलाओं (चित्र २६४) में उनके द्वारा शकट , धेनुक आदि अनेक असुरों का संहार, यमला-वृक्ष का समूल उच्छेद, ऊखल-बंधन प्रादि-प्रादि घटनाओं एवं गायों, ग्वालों और गोपियों के समूहों का अंकन आदि--इन सबको चित्रमालाओं में क्रमबद्ध रूप से चित्रित किया गया है। इनमें विभिन्न रीतिरिवाजों, सामाजिक तौर-तरीकों, धर्म-विश्वास और मान्यताओं, उत्सव-समारोहों, धार्मिक अनुष्ठानों
आदि का भी अंकन उल्लेखनीय है। इन चित्रांकनों में लाक्षणिक रूप से पूर्ण-कंभ, पुष्प आदि मंगलसूचक स्वागतपरक उपादानों, नृत्य और वादन, पर्व एवं त्यौहारों के उत्साह और आनंद का अनेक चित्रफलकों में चित्रात्मक अंकन है। इन चित्रों के शीर्षक-पट्टों के सविस्तार विवरण, इनके मूलपाठ तथा विषय-वस्तुओं के विशद विवेचन तिरुप्परुत्तिक्कुण्रम्-मंदिर विषयक टी० एन० रामचन्द्रन की पुस्तक में देखे जा सकते हैं। नायकवंशीय शासकों के काल की कला का दूसरा पक्ष उस वैभवशाली कला-परंपरा का अंतिम अध्याय है जिसका अनवरत धाराप्रवाह प्रचलन दक्षिण भारत और दक्षिणापथ में शताब्दियों तक रहा ।
कलम्बूर शिवराममूर्ति
1 रामचंद्रन् (टी एन). तिरुप्परुत्तिक्कुटरम् एण्ड इट्स टेंपल्स, बुलेटिन ऑफ द मद्रास गवर्नमेण्ट म्यूजियम, न्यू
सिरीज, जनरल सेक्शन, 1, 3. 1934. मद्रास.
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