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अध्याय 25]
उत्तर भारत
स्थापत्यीय निर्माण में अहमदाबाद और चंपानेर की सल्तनत-स्थापत्य-शैली के प्रभाव को ग्रहण किया गया है। इस मंदिर के एक भण्डार में सिरोह राज्य से लूटी गयी जैन प्रतिमाओं को राव रायसिंह द्वारा सन् १५८३ में सुरक्षित रखा गया था तथा इसके निकट ही इसी प्रकार का एक कृत्रिम आदिनाथ का मंदिर स्थापित कराया गया जिसमें आदिनाथ की संगमरमर निर्मित एक विशाल प्रतिमा भी स्थापित की गयी। इस मंदिर की कुछ अलंकृतियाँ समृद्ध अलंकारिक तत्त्वों से युक्त हैं। इसकी छत पर उत्तरवर्ती काल में भित्ति-चित्रों की रचना की गयी। इन भित्ति-चित्रों में परियों-जैसी कुछ विदेशी मूल की देवियों की प्राकृतियाँ भी चित्रित हैं।
बीकानेर की जैन मंदिर-स्थापत्य-कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण नेमिनाथ का मंदिर है जिसका निर्माण सन् १५३६ में हुआ। मूल-प्रासाद गूढ़-मण्डप तथा इसकी संलग्न दिशाओं में अर्ध-मण्डप से युक्त यह मंदिर अपनी निर्माण-योजना में पूर्वोक्त अन्य दोनों मंदिरों के समानप्राय है। इस मंदिर की योजना में मूलभूत एकता है जो अत्यंत समृद्धशाली है। इसके समस्त भाग संतुलित एवं समायोजित अलंकरण से सुसज्जित हैं। मूर्ति-शिल्पों, अभिलेखनाओं एवं कला-प्रतीकों में पारंपरिक लक्षणों का परिपालन हुआ है तथा इसमें भारतीय-इस्लामी प्रभावों से समन्वित अरब-शैली के अलंकरणों का भी समावेश है।
नागदा के अंतर्गत इकलिंगी नामक स्थान पर पद्मावती-मंदिर के नाम से प्रसिद्ध एक जैन मंदिर भी उल्लेखनीय है जिसका एक भाग पहाड़ी चट्टान को उत्खनित कर बनाया गया है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह पर पाये जानेवाले विक्रम संवत् १३५६ तथा १३६१ के अभिलेख के अनुसार यह मंदिर पार्श्वनाथ को समर्पित रहा प्रतीत होता है। इसमें एक सादा मूल-प्रासाद है जिसका स्तंभाकार केंद्रवर्ती शिखर अंग-शिखरों से सुसज्जित है तथा गुंबद-दार मण्डप, जो संभवतः पुनरुद्धार के समय बनाया गया है, आगे निकले हुए प्रवेश-मण्डपों से युक्त है। अंतर्भाग में तीन गर्भगृह हैं जिनमें से एक में सर्वतोभद्रिका-प्रतिमा प्रतिष्ठित है, अन्य दोनों गर्भगृह रिक्त हैं। इस मंदिर में अलंकरण-अभिलेखनाएँ अल्प ही है परंतु उसके कुछ भागों में देवी-देवताओं की शिल्पांकित प्राकृतियाँ अवश्य हैं।
नागदा में दो जैन मंदिर और भी हैं जिनमें एक अद्भुद्जी-मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस समय इस मंदिर का मात्र गर्भगृह तथा उससे संलग्न अंतराल, लंबे अनेक सतह वाले स्तंभ एवं शांतिनाथ की विशाल प्रतिमा ही शेष बच रही है। इसका निर्माण राणा कुंभा के शासनकाल के अंतर्गत विक्रम संवत् १४६५ में सारंग नामक एक व्यापारी ने कराया था। यहाँ पर कुछ अन्य मूर्तियाँ भी पायी गयी हैं जिनमें से मात्र तीर्थंकर कुंथनाथ और अभिनंदननाथ की दो प्रतिमाएँ ही पहचानी जा सकी हैं। मंदिर के बाह्य भाग में कुछ स्थापत्यीय निर्मितियों के अवशेष भी पाये गये हैं। दूसरा
1 कज़िन्स (एच). प्रोप्रेस रिपोर्ट प्रॉफ दि प्राक्यिॉलॉजिकल सर्वे प्रॉफ वेस्टर्न इण्डिया फॉर दि ईयर एजिंग
1905. पृ 62.
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