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चित्रांकन एवं काष्ठ-शिल्प
[ भाग7 से यूक्त इस रमणीय नारी-अंकन ने इस चित्र को पाण्ड्य चित्रकार की तुलिका से सृजित भव्य कृति बना दिया है।
यहाँ पर एक और उल्लेखनीय चित्र प्राप्त हुआ है जिसका प्रांशिक रूप ही शेष बचा है। इस चित्र में एक राजा और रानी का आकर्षक रूप-चित्रण है जो एक जैन साधु से वार्तालाप करते दर्शाये गये हैं। यह चित्र चित्रकला-विषयक-ग्रंथ चित्र-सूत्र के अनुसार विद्ध-चित्र-प्रकार का है और इस काल के चित्रकार द्वारा प्रतिकृति-चित्रण-परंपरा के उच्च विकसित तकनीकी दाक्षिण्य का द्योतक है। राजकुमार का आकर्षक मुकुट तथा रानी की प्रभावशाली वेशभूषा और केश-सज्जा, सब कुछ पूर्णरूपेण सुसंयोजित हैं (रेखाचित्र २५) तथा उनके समक्ष चित्रित सादा अलंकरणहीन जैन साधु का चित्र समूचे दृश्य में एक ऐसा विरोधाभास-सा दर्शाता है जो प्रभावशाली है।
एलोरा (देखिए प्रथम भाग में अध्याय १८) की इंद्र-सभा की भित्तियाँ एवं छत की समूची सतह चित्रांकित है । इन चित्रों में विभिन्न दृश्य अंकित हैं जिनमें उनके छोटे से छोटे विवरण को समग्रता से दर्शाया गया है। नौवीं-दसवीं शताब्दी के इन भित्ति-चित्रों में जैन ग्रंथों के चित्रांकनों की अनुकृतियाँ हैं तथा इसके साथ ही पत्र-पुष्प, पशु-पक्षियों पर आधारित कला-रूपों का भी अंकन है। यहाँ गोम्मटेश्वर के चित्र इसी विषय-वस्तु के मूर्तिपरक विधानों की तुलना के लिए उपयुक्त रहेंगे जिसका एक उदाहरण इसी गुफा से उपलब्ध हुआ है तथा उसी प्रकार के अन्य उदाहरण अन्यत्र उपलब्ध हैं। ये उदाहरण हैं श्रवणबेलगोला की एक ही शिला से निर्मित विशाल प्रतिमा और वह प्रसिद्ध कांस्यप्रतिमा जो इस समय प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में है। ये प्रतिमाएं अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रदान करती हैं। इस प्रतिमा में साधु बनने के उपरांत गोम्मटेश्वर को गहन ध्यान की अवस्था में खड़े हुए दर्शाया गया है। उनके पैरों पर चीटियों की बाँबियाँ बन गयी हैं तथा लताओं ने द्रुतगति से फैलकर उनके शरीर को चारों ओर से घेर लिया है। उनके पार्श्व में दोनों ओर उनकी बहनें खड़ी हैं । इस विषय को चित्रित करने वाली समस्त प्रतिमाओं में यह प्रतिमा अति उत्तम रूप से अंकित है। इसी प्रकार यहाँ की छत के एक भाग पर दिक्पाल-समूह अंकित है, जिसमें यम अपनी पत्नी यमी सहित भैसे पर आसीन है और उनके पीछे उनके अनुयायी सेवकगण हैं । दिक्पाल के गणों का अंकन इसी पद्धति पर है। ये समूह हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। इन चित्रों की तुलना हेमवती-स्थित मंदिर की छत पर नोलंब कलाकारों द्वारा अंकित इसी प्रकार के चित्र से की जा सकती है । हेमवती के ये चित्र इस समय मद्रास संग्रहालय में हैं। बादलों का चित्रांकन, मानवाकृतियों में बड़ी-चौड़ी आँखों का अंकन, तथा शैलीकरण का आरंभ, जो अभी तक स्पष्ट नहीं हो पायी थी, विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इन चित्रों में बादलों के मध्य आकाश में उड़ते हुए आलिंगन-बद्ध विद्याधर-दंपति, उनकी ग्रीवा तथा अन्य अंगों की कमनीय त्रिवलियाँ, अर्पण हेतु पुष्प-पुट में रखे फूल, उनकी पुष्प-धारणी अंजलि (रंगीन चित्र ६-१०), वंदना के लिए हाथों को ऊपर उठाकर तथा साथ-साथ नीचे लाते हुए बौने गणों, जिनमें से कुछ गण शंख बजा रहे हैं तथा कुछ गण वातावरण में आपूरित दिव्य संगीत के साथ तालबद्ध रूप में तालियाँ
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