Book Title: Jain Kala evam Sthapatya Part 2
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 365
________________ अध्याय 30] भित्ति-चित्र यहाँ दर्शाया गया है। उसकी देह-यष्टि की कमनीयता तथा प्राकृति को अंकित करने वाली लहरदार रेखाएँ उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार, उसके एक ओर अंकित इसके भक्तों को, जो संभवतः शाही परिवार के सदस्य, राजा, रानी तथा राजकुमारी आदि हैं, अत्यंत कोमलता के साथ अंकित किया गया है। ये ताड़पत्र के छोर की ओर अंकित हैं (रंगीन चित्र १२ और १३)। इन दोनों ताड़पत्रों के चित्रों की केंद्रवर्ती मुख्य प्राकृति कायोत्सर्ग तथा पद्मासनस्थ तीर्थंकर महावीर की है। यद्यपि तीर्थंकर की निर्वसन-प्राकृति जैसा विषय अत्यंत सादा है लेकिन इसका अंकन बहुत कठिन है । फिर भी, इन दोनों चित्रों में चित्रकार ने उन्हें अत्यंत कलात्मक ढंग से चित्रित किया है। इन दोनों चित्रों की प्राकृतियाँ सौंदर्यात्मक दष्टि से अत्यंत मनोहारी हैं। (रंगीन चित्र १४ और १५) तीर्थंकर का आसन विशद एवं अलंकृत है, जो पीछे की ओर मकर के अलंकरण से अलंकृत है, तथा उसके पीछे सिंह है जो पार्श्व में खड़ी चौरीधारिणी की मनोरम आकृतियों के अनुरूप है । इस चित्र को देखने पर अविलंब प्रारंभिक चोलकालीन उस श्रेष्ठ कलाकृति का स्मरण हो आता है जिसमें नागपट्टिणम् बुद्ध को उनके पार्श्व में नागराज चौरीधारियों के सहित दर्शाया गया है । इस ताड़पत्र के एक दूसरे किनारे पर पुष्पदंत के यक्ष अजित तथा बैठे हुए भक्तों के एक जोड़े को अंकित किया गया है (रंगीन चित्र १६ और १७) । यह चित्र यहाँ पर प्रायः एक ही रंग में है लेकिन उसे इस कुशलता से अंकित किया गया है कि एक रंग के होते हुए भी चित्र की समूची विशेषताएं उभरकर सामने आ गयी हैं। अन्य ताडपत्रों में, प्रत्येक के एक किनारे पर पार्श्वनाथ अंकित हैं। उनके सिर पर नागफण का छत्र है और वे सिंहों के आसन पर बैठे हैं, उनके पार्श्व में चौरीधारी सेवक हैं तथा उनके एक अोर धरणेंद्र यक्ष एवं दूसरी ओर पद्मावती यक्षी अंकित हैं । एक ताड़पत्र में एक सिरे पर श्रुतदेवी अंकित हैं, जिसके दोनों ओर चौरीधारिणी सेविकाएँ हैं, जिनकी प्राकृतियाँ कमनीय और सहज हैं। प्राकृतियों की वक्रता (झुकाव), केश-सज्जा, घूमी हुई मुखाकृति, ग्रीवा का मोड़ तथा पालथी की मदा में पैर आदि सभी अत्यंत कमनीयता के साथ अंकित किये गये हैं (रंगीन चित्र १८ और हामी प्रकार लगभग ऐसा ही आकर्षक चित्र एक अन्य ताड़पत्र के किनारे की ओर अंकित है। इसी गली में बाहुबली संबंधी दृश्य अंकित किये गये हैं जिनमें साधनावस्था में खड़े उनके पैरों पर लिपटी लता दिखायी गयी हैं। (रंगीन चित्र २० और २१) । चित्र में उनकी बहनों को उनके पार्श्व में खडे या गया है । यह अंकन एलोरा के उस फलक के अंकन से बिलकुल मिलता है जिसमें इसी विषय को अंकित किया गया है। इस चित्र में बाहुबली के महत्त्वपूर्ण विषय का वैसा ही प्रभावपर्ण प्रस्तुतीकरण है जैसा कि श्रवणबेलगोला स्थित बाहुबली की विशाल पाषाण-प्रतिमा में तथा बंबई के प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में उपलब्ध एक धातु-प्रतिमा में हुआ है। यक्षी अंबिका का भी, जो जैन कला में अत्यंत लोकप्रिय रही हैं, एक चित्र यहाँ पर प्राप्त है। अंबिका यक्षी एक आम के वृक्ष के नीचे दो शिशुओं को लिये हुए अपने वाहन सिंह सहित अंकित हैं। बड़ा शिशु सिंह पर चढ़कर खेल रहा है जबकि छोटे शिशु को अंबिका के प्रति निकट दिखाया गया है। भक्तों, उपासकों द्वारा पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ की पूजा-अर्चना की विजय 393 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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