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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई०
[ भाग 5 जगत् में उसने एक नयी ही प्रवृत्ति का प्रवर्तन किया जिसमें प्रतीकों का स्थान है और आंतरिक बलिष्ठता का भी; और उसमें शरीर-गठन और पालिश का तथा अवयवों की मांसलता का भी ध्यान रखा गया है।
के० वी० सौंदर राजन्
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