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अध्याय 24 ]
दक्षिणापथ मोर दक्षिण भारत
स्थापित शांतिनाथ की मूर्ति भी कुछ अधिक ही ऊँची है, उसके साथ किम्पुरुष और महामानसी का अंकन हुआ है । हलेबिड के ये मंदिर जैन मंदिरों के अधिकतम सर्वांग-संपन्न उदाहरण हैं और दक्षिणी विमान-प्रकार के मंदिरों की शैली इनमें अमिश्रित रूप में विद्यमान है। इनका अलंकरण भी आडंबरहीन है। इनमें एक मुख-मण्डप की संयोजना है जिसमें पार्श्व-वेदिका सहित सोपान-वीथि है । ११५५ ई० में निर्मित हेरगु की बस्ती अब खण्डहर होकर भी अपनी सूक्ष्म एवं विशिष्ट कला द्वारा आकृष्ट करती है। यह मंदिर पार्श्वनाथ को समर्पित है।
__ तुमकुर जिले के नित्तूर में बारहवीं शती के मध्य में निर्मित शांतीश्वर-बस्ती में गर्भगृह, अर्ध-मण्डप, नवरंग और मुख-मण्डप हैं और नवरंग की छत में दिक्पाल के कोष्ठ की संयोजना है। गर्भालय की मूल मूर्ति अब वहाँ नहीं है, उसके स्थान पर एक नयी मूर्ति स्थापित कर दी गयी है। बाह्य भित्ति में दोहरे स्तंभोंवाले विमान-पंजर हैं जिनके अंतरालों में तीर्थंकर-मूर्तियाँ हैं, कुछ पद्मासन और कुछ खड्गासन-मुद्रा में; किन्तु उनमें से अधिकांश अपूर्ण-निर्मित हैं । नवरंग की उत्तरी और दक्षिणी भित्तियों पर रिक्त देवकोष्ठ हैं, उनके पावों पर नारी-आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं । उसी जिले में हेग्गेरे की पार्श्वनाथ-बस्ती कृष्ण पाषाण से निर्मित है; यह होयसल-शैली का एक सुंदर मंदिर है जिसके मण्डप और नवरंग पूर्णतया सुरक्षित हैं। यह इस क्षेत्र में अपने प्रकार की एक ही बस्ती है जिसके शुकनासायुक्त नवरंग कृष्ण वर्ण के चार स्तंभों पर आधारित हैं। मध्यवर्ती क्षिप्त-वितान में कुण्डलनालदण्ड हैं। अन्य वितान समतल-प्रकार के हैं । बाह्य भित्तियाँ भी समतल हैं, केवल उनपर पुष्पवल्लरी-युक्त पट्टिकाएँ अंकित हैं। प्रतीत होता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग ११६० ई० में महासामंत गोविदेव ने अपनी पत्नी महादेवी नयकित्ति की स्मृति में कराया था।
मैसूर जिले में होसहोललू की पार्श्वनाथ-बस्ती होयसल-काल के प्राचीनतम मंदिर में से एक है, पर अब वह भग्नावस्था में है। ११९८ ई० में निर्मित उसके नवरंग में यक्ष धरणेद्र
और यक्षी पद्मावती की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मैसूर जिले के ही बेल्लूर की विमलनाथबस्ती में एक ७६ सेण्टीमीटर ऊँची विमलनाथ की मूर्ति है जिसके पादपीठ पर तेरहवीं शती से पूर्व का एक अभिलेख है।
बंगलौर जिले में शांतिगत्ते की वर्धमान-बस्ती एक साधारण मंदिर है जिसमें स्थापित मूर्ति के पृष्ठभाग पर होयसल राजाओं की, विनयादित्य से नरसिंह-प्रथम (११४१-७३ ई.) तक की वंशावली दी गयी है। जिसके बाद यह अभिलेख समाप्त हो जाता है। इससे यह संभावना व्यक्त होती है कि यह मूर्ति इस अभिलिखित शिला पर ही, अनजाने या जानबूझकर उत्कीर्ण की गयी। यह मूर्ति प्रभावली सहित एक मीटर ऊँची है। इस मंदिर में पदमावती, ज्वालामालिनी, सरस्वती, पंच-परमेष्ठी, नव-देवता आदि की धातनिर्मित आसीन मूर्तियाँ हैं ।
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