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- वास्तु- स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई०
पश्चिमी समुद्र तट के स्मारक
मसूर क्षेत्र में जैन धर्म के केंद्र अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक बद्धमूल थे क्योंकि श्रवणबेलगोला के अ सस जैनों का प्रभाव बहुत पहले स्थापित हो चुका था । अन्य केंद्रों में से शिमोगा जिले में स्थित हुम्चा महत्त्वपूर्ण है जिसका प्राचीन नाम पोम्बुर्चा है और जो सांतर राजाओं की राजधानी था । इस राजधानी को सहकार के पुत्र जिनदत्त ने बसाया था जो सातवीं-आठवीं शताब्दी में उत्तर से आया था। सबसे प्राचीन अभिलेख ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ का सांतर राजाश्रों का है । यहाँ की पंच-वसदि को उर्वी - तिलकम् भी कहते हैं । इसका निर्माण कदाचित् रक्कस गंग की पौत्री कत्तलदेवी ने कराया था। इस मंदिर की आधार शिला की स्थापना कत्तलदेवी के गुरु और नंदिगण के प्रमुख श्री विजयदेव ने की थी । एक अन्य बस्ती का निर्माण उसके सामने लगभग ११०३ ई० में हुआ । पंच - बस्ती या पंचकूट जिन मंदिर एक आयताकार भवन है जिसकी ढलवाँ छत एक के ऊपर - एक शिलाएँ रखकर विशेष रूप से कदंब - शैली में बनायी गयी है, उसके प्रतिबंध प्रकार के एक ही अधिष्ठान पर एक पंक्ति में कई गर्भालय बने हैं। मंदिर से कुछ दूर एक उत्तुंग मान- स्तंभ है जिसके शीर्ष पर ब्रह्मदेव की मूर्ति है । इस मंदिर के उत्तर में एक अन्य दक्षिणाभिमुख मंदिर है जिसका आकार लगभग मध्यम है; यह 'दक्षिणी' विमान-शैली के और भी अंतिम चरण का मंदिर है । यह एक द्वितल भवन है जिसकी छत पर शिखर के सम्मुख भाग पर शुकनासी की संयोजना है ।
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यादवों और काकतीयों के शासनक्षेत्र के स्मारक
सेऊणदेश और देवगिरि के यादवों के शासनकाल में जैन धर्म के प्रभाव का परिचय मनमाड़ के निकट अंजनेरी के गुफा मंदिरों से मिलता है; जहाँ किन्हीं अर्थों में, एलोरा की गुफा - कला की परंपरा चलती रही । नासिक से २१ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर यहाँ एक वर्ग किलोमीटर से भी बड़े क्षेत्र में निर्मित मंदिरों के एक बहुत बड़े समूह में से सोलह सुर क्षित हैं । इनमें से द्वितीय समूह के मंदिर अधिक सुरक्षित हैं और अधिक आकर्षक भी । यहाँ के अभिलेखों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अभिलेख एक मंदिर के आलों पर उत्कीर्ण है जिसमें वृत्तांत है कि सेऊण - तृतीय ने शक सं० १०६३ (११४१ ई० ) में चंद्रप्रभ - स्वामीमंदिर को तीन दुकानों का दान किया; एक अन्य अभिलेख के अनुसार वत्सराय नामक एक धनाढ्य सार्थवाह ने एक दुकान और एक घर का दान किया । इस मंदिर के खण्डहरों में एक प्रवेश द्वार पर अभी भी एक चंद्रशिला बची हुई है और यद्यपि ध्वस्त गर्भालय रिक्त पड़ा है पर उसके प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण पार्श्वनाथ की दो खड्गासन मूर्तियाँ अभी भी खण्डित अवस्था में विद्यमान हैं; और इनमें से एक मंदिर के प्राचीर में एक पार्श्वनाथ की तथा एक किसी अन्य तीर्थंकर की मूर्तियाँ भी विद्यमान हैं ।
[ भाग 5
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