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अध्याय 21
पूर्व भारत
सामान्य पर्यवेक्षण
कला के इतिहास की दृष्टि से भारतीय कला के किसी कालखण्ड को एक धार्मिक नामकरण के अंतर्गत रखकर विवेचित करना न तो संभव है और न अपेक्षित ही । भारतीय कला युग-युगांतरों से निरंतर विकसित होती रही है। उसका प्रत्येक परवर्ती काल अपने पूर्ववर्ती काल की कला-परंपरा और उसकी उपलब्धियों को लेकर आगे बढ़ा है, जिसे उसने परिपक्वता प्रदान की है तथा उसकी समयानुरूप आवश्यकताओं की पूर्ति की है। कला की इस निरंतर प्रवहमान विकास-धारा में विजातीय मुसलमानों के आगमन-काल से पूर्व कोई अवरोध नहीं आया। इन कला-शैलियों के पल्लवन की प्रेरक शक्तियाँ निस्संदेह ही धार्मिक प्रेरणा रही है। भारत अनेकानेक धर्मों का देश रहा है, यहाँ तक कि एक ही धर्म के अंतर्गत पृथक-पृथक मान्यताओं और सिद्धांतों को लेकर अनेक परस्परविरोधी एवं कट्टर प्रतिद्वंद्वी संप्रदाय रहे है। इन समस्त धर्मों और संप्रदायों ने कला के माध्यम से अपने विचारों और अवधारणाओं की अभिव्यक्ति के लिए अपने समकालीन या क्षेत्रविशेष में प्रचलित कला के सामान्य प्रतिमानों को अपनाया है क्योंकि इन प्रतिमानों को उनकी तर्कसम्मत दिशाओं से हटाना इन धार्मिक और संप्रदायगत विभेदों के लिए संभव नहीं हो सका। विषय-वस्तुओं के अंकन के अतिरिक्त ये प्रतिमान अपने शैलीगत रूप में समस्त धर्मों के लिए एक समान रहे हैं। यदि कोई अंतर है तो वह मात्र मूर्तिपरक विषय-वस्तू में ही। यह वास्त-शिल्प के कतिपय प्रकारों तक ही सीमित है जिसे किसी धर्म-विशेष के संदर्भ में ही देखा जा सकता है।
यह स्पष्ट है कि विवेच्य कालखण्ड के अंतर्गत पूर्व भारत में जैन धर्म की स्थिति प्रभत्वपूर्ण नहीं रही। इस क्षेत्र से प्राप्त बौद्ध और हिन्दू प्रतिमाओं की विपुल संख्या की तुलना में जैन प्रतिमाओं की संख्या अति अल्प रही है, यह बात विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करती है। बंगाल, बिहार और उड़ीसा से प्राप्त ऐसी जैन प्रतिमाएं बहुत ही कम हैं जिन्हें आकर्षक और प्रभावशाली कहा जा सके । अधिकांशतः वे प्रतिमाएँ, जो प्राप्त हुई हैं, इस समूचे क्षेत्र के निर्जन स्थलों में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी थीं, या फिर कुछ सीमाबंधित स्थानों में सामूहिक रूप से एकत्रित थीं। हमें यहाँ से जैन धर्म से संबद्ध चित्रकला के अवशेष भी प्राप्त नहीं हुए हैं। चीनी यात्री ह्वान-सांग के उस साक्ष्य का उल्लेख अध्याय १५ में किया जा चका है जो इस क्षेत्र में कम से कम सातवीं शताब्दी में जैन धर्म की लोकप्रियता
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