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अध्याय 22 ]
मध्य भारत
टोडे टिके हुए हैं जिसकी रूपरेखा तीखी गोलाई लिये हुए हैं। टोडों के ऊपर एक सरदल है जिसपर बेल-बूटों का अलंकरण और ग्रास-पट्टिका है । सरदल एक सादे कपोत को अधार देता हैं जिसके ऊपर अलंकृत त्रिकोणों की पट्टी है। चूंकि भित्ति-स्तंभों के मध्य भाग का अलंकरण किया गया है और छोरों को (जो भिन्न प्रकार के पत्थरों से बने हैं) सादा ही रखा गया है अतः ऐसा जान पड़ता है कि पार्श्व-चतुष्कियों को दीवारों से आच्छादित करने की योजना रही होगी। इस तथ्य की पुष्टि इससे भी होती है कि छोरों को, जो हलके पीले रंग के बलुआ पत्थर के बने हैं, एकदम सादा रखा गया है। ये अलंकृत आधारों पर बने हैं और उनपर उच्चालक खण्ड, शीर्षभाग और टोडे है, जो शैली में अर्ध-स्तंभों के बिलकुल समान हैं। उनपर द्वारपालों की प्राकृतियाँ बनी हुई हैं।
द्वार-मार्ग के पीछे के अर्ध-स्तंभ ग्रेनाहट के बने हैं किन्तु वे बलुआ पत्थर के आधारों पर टिके हैं। जो भी हो, एक अर्ध-स्तंभ में उपपीठ भी ग्रेनाहट का बना हआ है। क्योंकि दोनों अर्ध-स्तंभों की संयोजना कुछ ही भिन्न है, अतः यह जान पड़ता है कि ये बाद में जोड़े गये हैं।
द्वार-मार्ग की सात साखाएँ हैं। पहली शाखा का अलंकरण गुच्छाकार रचना से, दूसरी और छठी का व्यालों से, तीसरी और पांचवीं का नृत्य करते एवं संगीत-वाद्य बजाते हुए गणों से किया गया है। चौथी, जिसे एक स्तंभ-शाखा माना जाता है, पर एक शीर्षभाग है जिसमें कर्णिका और पद्म बने हैं । सातवीं शाखा, जो द्वार-मार्ग का कटावदार वेष्टन करती है, की सज्जा लहरदार बेल-बूटों से की गयी है तथा उसके पार्श्व में एक खड़ी चित्र-वल्लरी है जिसमें गणों को नृत्य करते हुए अथवा संगीत-वादय बजाते हए दिखाया गया है। पहली तीन शाखाएँ ऊपर की ओर से ले जायी गयी हैं. और चौथी या स्तंभ-शाखा पर एक सरदल है जिसके मध्य में गरुड़ पर आसीन अष्टमजी चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति अंकित है। उसके हाथों में फल, बाण, चार चक्र, धनुष और शंख हैं। ठीक दाहिने और बायें किनारों के बालों में तीर्थंकर-प्रतिमाएँ आसीन हैं । सरदल का जो अंतर्वर्ती भाग है उसमें ठीक दाहिने नवग्रहों की आसीन प्रतिमाएँ हैं। सरदल के अंतर्वर्ती भाग में ठीक दाहिनी ओर नवग्रहों की आसीन प्रतिमाएँ और ठीक बायीं ओर द्विभुजाओं एवं वृषभशीर्ष वाले आसीन देवताओं की एक-सी आठ आकृतियाँ बनायी गयी हैं। इनके हाथ अभय-मुद्रा में हैं और उनमें जल-कुंभ हैं । ये अष्टवसु जान पड़ते हैं।
सरदल की ऊपरी चित्र-वल्लरी में गर्भाधान के समय तीर्थकर की माता द्वारा स्वप्न में देखे गये सोलह मंगल-प्रतीक चित्रित किये गये हैं। ये प्रतीक कमलदलों पर बनाये गये हैं। वे इस प्रकार हैं : ऐरावत हाथी (२) वृषभ, (३) प्रचण्ड सिंह, (४) श्री देवी (५) एक कीर्तिमुख को वेष्टित करदी पुष्पमाला, (६) पूर्ण चंद्रमा, जिसके मध्य में खरगोश की आकृति है, (७) उदित होता हुआ सूर्य जिसमें मध्य में सूर्य-देवता है, (८) मीन युगल, (९) दो कलश, (१०) तालाब और उसमें एक कुछुआ, (११) क्षुब्ध सागर, (१२) सिंहासन, (१३) विमान, (१४) नागेन्द्र भवन में बैठे हुए नाग-दंपति, (१५) रत्नराशि, तथा (१६) आसीन मुद्रा में अग्नि जिसके
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