________________
श्रध्याय 21 ]
पूर्व भारत
हो गये हैं, जैसे श्वेतांबर संप्रदाय में तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लांछन सात- फणी - नाग छत्र है जबकि दिगंबर संप्रदाय में सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का लांछन पाँच फणी - नाग-छत्र है ।
शैलीगत विशेषता के आधार पर किसी विशेष कलाकृति के रचना- काल को निर्धारित करने की पद्धति में एक शैली के ऊपर दूसरी शैली के प्रारोपित हो जाने की संभावना बनी रहती है; इसलिए बहुत संभव है कि अध्याय १५ में उल्लिखित अनेक कलाकृतियाँ विवेच्य कालखण्ड से संबंधित हों । उदाहरण के लिए सुरोहोर से प्राप्त ॠऋषभनाथ, मण्डोईल से प्राप्त ॠषभनाथ ( चित्र १५५ क ), कण्टावेनिया से प्राप्त पार्श्वनाथ, उजानी से प्राप्त शांतिनाथ की प्रतिमा का उल्लेख किया जा सकता है । अतः पुनरावृत्ति से बचने लिए हम प्रस्तुत विवेचन में बंगाल से प्राप्त प्रतिमानों ( पृ १६० ) और अलौरा (जिला मानभूम बिहार ) से प्राप्त कांस्य प्रतिमाओं ( पृ १७३ ) की चर्चा नहीं करेंगे ।
इस कालखण्ड की प्रतिमाओं की चर्चा करते हुए हम सबसे पहले पश्चिम बंगाल की ऋषभनाथ की दो प्रतिमाओं का उल्लेख करेंगे, जिनमें से एक प्रतिमा मायता (जिला मिदनापुर ) से प्राप्त हुई है और दूसरी गढ़ जयपुर ( जैपुर ) जिला पुरुलिया से । ऋषभनाथ की पहली प्रतिमा (चित्र १५५ ख )
ए पत्थर से निर्मित है और कुछ घिसी हुई है। तीर्थंकर कायोत्सर्ग - मुद्रा में हैं जिनके पार्श्व में दो सेवक हैं । इस मूर्ति के दोनों पार्श्व में दो-दो की संख्या में चार अन्य तीर्थंकर - प्रतिमाएँ हैं । इस प्रतिमा के पादपीठ पर ऋषभनाथ का लांछन वृषभ अंकित है । दूसरी प्रतिमा ( चित्र १५६ क ) में तीर्थंकर कायोत्सर्ग-मुद्रा में दो सेवकों के बीच खड़े हैं तथा पादपीठ पर लांछन वृषभ उत्कीर्ण है । ये तीर्थंकर एक मंदिर में प्रतिष्ठित दिखाई देते हैं। मंदिर के अग्रभाग पर तोरण है जो त्रिपर्ण अलंकरण से सुशोभित है, और उसका सतहदार मंचों से निर्मित वितान एक आमलक से मण्डित है । इस प्रतिमा पर चौबीसों तीर्थंकरों की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं, जो छह-छह की संख्या में दो-दो पंक्तियों में उसके दोनों ओर अंकित हैं । ये दोनों प्रतिमाएँ ग्यारहवीं शताब्दी की प्रतीत होती हैं और इस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत आशुतोष म्युजियम ऑफ इण्डियन आर्ट में सुरक्षित हैं । लगभग इसी काल की अन्य प्रतिमाओं में से दो अन्य प्रतिमाएँ भी उल्लेखनीय हैं, जिनमें से एक प्रतिमा ऋषभनाथ की है जो इस समय धारापात ( जिला बाँकुरा) के मंदिर की एक दीवार में चिनी हुई है तथा दूसरी प्रतिमा पार्श्वनाथ की है जो बहुलारा (जिला बाँकुरा) के सिद्धेश्वर मंदिर के अंतःभाग में स्थित है ।
सोनामुखी (जिला बाँकुरा) में लगभग सातवीं शताब्दी निर्मित पद्मासनस्थ ऋषभनाथ की प्रतिमा में एक दुर्लभ मूर्तिपरक विशेषता पायी जाती है। इस प्रतिमा में तीर्थंकर पद्मासन मुद्रा में एक पद्मपुष्प पर अवस्थित हैं जो एक वृक्ष की फैली हुई पर्णावली पर आधारित है । भामण्डल के दोनों
1 बंद्योपाध्याय (ए के). बाँकुरा जेलार पुरकीति ( बंगला ) . पू 126 एवं चित्र .
Jain Education International
265
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org