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अध्याय 20 ]
उत्तर भारत
प्रदक्षिणा-पथ सहित गर्भगृह, द्वार-मण्डप, गूढ़-मण्डप, मुख-मण्डप और एक मुख-चतुष्की थे। किन्तु सन् ६५६ में उसका आंशिक रूप से जीर्णोद्धार किया गया। मुख्य मंदिर के आसपास की देवकूलिकाएँ, मुख्य शिखर और एक तोरण ग्यारहवीं शताब्दी में जोड़े गये । मूल गर्भगृह केवल कपोत-स्तर तक ही सुरक्षित रह सका है, जबकि कंगरों की तीन पंक्तियों के समूह से युक्त शिखर का आगे चलकर राजस्थान की विकसित मध्यकालीन शैली में पूनरुद्धार किया गया है।।
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रेखाचित्र 15. प्रोसिया : महावीर-मंदिर-समूह की एक देवकुलिका
इन अतिरिक्त निर्मितियों के होते हए भी, मंदिर में एक प्रकार की रचनात्मक संगति रह सकी है। निकटवर्ती देवकुलिकाओं के व्यंग-विन्यास में सामान्यतः प्रवणित पीठ, जैन देवताओं की मूर्तियों से अलंकृत जंघा, छज्जों से युक्त मुख-चतुष्की, अलंकृत छतें तथा अंतःभाग रहे हैं। फिर भी जैसा कि ढाकी का विचार है, इनके सूक्ष्म निर्माणात्मक परीक्षण से यह ज्ञात होता है कि ये ग्यारहवीं शताब्दी के विभिन्न चरणों में निर्मित किये गये थे। अलंकरण पक्षों के अतिरिक्त, उक्त मूर्तियाँ अपने युग की जैन मूर्तिकला के वैविध्य का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं ।
1 कृष्णदेव. टेम्पल्स प्रॉफ नार्वनं इण्डिया. 1969. नई दिल्ली. पृ 31. 2 ढाकी, पूर्वोक्त, 1 319 तथा परवर्ती.
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