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दृष्टिगोचर होने लगती है। जहॉपर ये मूर्तियाँ विराजमान है, वहाका दृश्य भी वडा मनोहर है। उर्वाई दरवाजेके ऊपरी फाटकपरसे पहाड ढाल हो गया है। इसी ढालमे ये मूर्तियाँ काटी गई हैं। ये मूर्तियाँ कब बनाई गई इस बातका भी पता चलता है। सम्वत् १४९१ व १५१० में जब तँवर राजपूत यहाँ राज्य करते थे उस समयकी बनी हुई ये मूर्तियों है । अर्थात् ईस्वी १५ वीं शताब्दीकी ये मूर्तियाँ हैं । ये मूर्तियाँ बहुत ऊंची है। इनकी ऊँचाईका इसीसे अनुमान कर लेना चाहिए कि उर्वाई दरवाजेकी एक मूर्ति ५१ फूट ऊँची है। जैनियोंके धार्मिक विचारके अनुसार ये सब मूर्तियाँ नंगी खड़ी हैं। मुसलमानी राज्यकालमें इस किलेकी बहुतसी मूर्तियाँ तोडी गई; परन्तु जो मूर्तियाँ पहाडीमें अधर बनी थीं वे ज्यादातर नहीं टूटी। बाबरने एक स्थान पर लिखा है कि "मैंने इन तमाम मूर्तियोंको तोड़नेका हुक्म दे दिया था मगर वे ही मूर्तियाँ किसी कदर तोडी गई जिन तक आसानीसे पहुँच हो सकती थी।" अब यह बात सोचने की है कि इन मूर्तियोंको ढालू पहाडीके बीचोबीच अधर बनानेमें कितनी विद्या, बुद्धि और परिश्रम खर्च करना पड़ा होगा। इन मूर्तियोंको देखनेसे इस देशकी प्राचीन कारीगरी और गृहनिर्माणशास्त्रकी जानकारीका बहुत कुछ पता चलता है।
(जयाजी प्रतापसे उद्धृत)