Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 17
________________ 15 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ टहने को काटनेवाला दूसरा व्यक्ति तीव्रतर इच्छावाला होने के कारण नील-लेश्यावाला था। टहनी को काटनेवाला तीसरा व्यक्ति तीव्र इच्छावाला होने के कारण कापोत-लेश्यावाला था। इसीप्रकार आमों का गुच्छा तोड़नेवाला चौथा व्यक्ति मन्द इच्छावाला होने के कारण पीत-लेश्यावाला था। केवल पके हुए आम तोड़नेवाला पाँचवाँ व्यक्ति मन्दतर इच्छावाला होने के कारण पद्म-लेश्यावाला था और वह अत्यन्त सन्तोषी छठा व्यक्ति मन्दतम इच्छावाला होने के कारण शुक्ललेश्यावाला था। इसप्रकार व्यक्ति की सर्व ही कषायों की तीव्रता व मन्दता का अनुमान कर लेना चाहिये। जिसप्रकार यहाँ साधना के प्रकरण में कषायों की शक्ति दर्शाने के लिये लेश्या वृक्ष का यह चित्रण किया गया है। उसीप्रकार आगे 'धर्म का प्रयोजन' बताने के लिए, इच्छा गर्त की भयंकरता दर्शाने के लिये 'संसार वृक्ष' का कलापूर्ण चित्रण प्रस्तुत किया गया है। ये दोनों चित्रण जैन आम्नाय में आ-बाल-गोपाल प्रसिद्ध हैं। यत्रतत्र पुस्तकों में तथा मन्दिरों में लगे हुए मिलते हैं। इन्हें केवल सजावट के लिये नहीं बनाये गये हैं। वास्तव में ये दोनों ही चित्र आध्यात्मिक भावनाओं से तथा रहस्यपूर्ण उपदेशों से ओत-प्रोत हैं। अपने आन्तरिक भावों का दर्शन करते हुए तीव्र भावों से पीछे हटने में ही इनकी सजावट का सार्थक्य है। इसमें ही कल्याण है। - शान्तिपथ प्रदर्शन से साभार मन्दिर में श्रद्धा-भक्ति लेकर जाना और मन्दिर से ज्ञान-वैराग्य लेकर आना - तभी मन्दिर जाने की सार्थकता है।

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