Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 54
________________ A जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ मुँह बाये तुझे ललचाई-ललचाई दृष्टि से ताक रहे हैं। इस शरीर को देख जिस पर चिपटी हुई मधु-मक्षिकायें तुझे चूंट-चूंटकर खा रही हैं। इतना होने पर भी तू प्रसन्न है। यह बड़ा आश्चर्य है। आँख खोल, तेरी दशा बड़ी दयनीय है। एक क्षण भी बिलम्ब करने को अवकाश नहीं। डाली कटने वाली है। तू नीचे गिरकर निःसन्देह उन अजगरों का ग्रास बन जायेगा। उस समय कोई भी तेरी रक्षा करने को समर्थन होगा। अभी भी अवसर है। आ मेरा हाथ पकड़ और धीरे से नीचे उतर आ। यह हाथी मेरे सामने तुझे कुछ नहीं कहेगा। इस समय मैं तेरी रक्षा कर सकता हूँ। सावधान हो, जल्दी कर।" ____ परन्तु पथिक को कैसे स्पर्श करें वे मधुर-वचन । मधुबिन्दु के मधुराभास में उसे अवकाश ही कहाँ है यह सब कुछ विचारने का ? "बस गुरुदेव, एक बिन्दु और, वह आ रहा है, उसे लेकर चलता हूँ अभी आपके साथ।" बिन्दु गिर चुका। “चलो भय्या चलो', पुनः गुरुजी की शान्त ध्वनि आकाश में गूंजी, दिशाओं से टकराई और खाली ही गुरुजी के पास लौट आई। “बस एक बूंद और, अभी चलता हूँ", इस उत्तर के अतिरिक्त और कुछ न था पथिक के पास। तीसरी बार पुनः गुरुदेव का करुणापूर्ण हाथ बढ़ा। अब की बार वे चाहते थे कि इच्छा न होने पर भी उस पथिक को कौली (बाहों में) भरकर वहाँ से उतार लें; परन्तु पथिक को यह सब स्वीकार ही कब था ? यहाँ तो मिलता है मधुबिन्दु और शान्तिमूर्ति इन गुरुदेव के पास है भूख व प्यास, गर्मी व सर्दी तथा अन्य अनेकों संकट। कौन मूर्ख जाये इनके साथ ? लात मारकर गुरुदेव का हाथ झटक दिया उसने और क्रुद्ध होकर बोला – “जाओ अपना काम करो, मेरे आनन्द में विघ्न मत डालो।" गुरुदेव चले गये, डाली कटी और मधुबिन्दु की मस्ती को हृदय में लिये, अजगर के मुँह में जाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी उसने । कथा कुछ रोचक लगी है आपको, पर जानते हो किसकी कहानी है?

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