Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 58
________________ 56 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ ज्ञान के साथ विवेक एक गुरुजी के दो शिष्य थे। एक का नाम आज्ञानंद था और दूसरे का नाम बोधानंद। दोनों में बड़ी मित्रता थी। वह साथ-साथ रहते थे। कहीं जाना होता तो दोनों साथ आते-जाते थे। दोनों में गुरुजी के प्रति बड़ी श्रद्धा और विश्वास था। गुरुजी के कथन को वे सदा सत्य मानते थे। किन्तु दोनों में एक अन्तर था आज्ञानंद गुरुजी के कथन को शब्दश: मानता, उसमें अपने विवेक का प्रयोग नहीं करता था। किन्तु बोधानंद गुरुजी के कथन के मर्म तक पहुँचता और तदनुसार आचरण करता था। किसी प्रसंग में गुरुजी ने उपदेश दिया था कि “सारे संसार में परमेश्वर का वास है, चाहे फिर वह चिंटी जैसा क्षुद्र हो अथवा हाथी जैसा विशाल हो, सभी परमात्मा को प्यार करते हैं। प्रत्येक जीव में उसी का निवास है।" ____ एक बार दोनों शिष्य शहर में गये। वहाँ एक तंग (सकड़ी) गली से गुजरते हुए हाथी को उन्होंने देखा। हाथी सामने से उनकी ओर चला आ रहा था। हाथी पर महावत बैठा हुआ था फिर भी हाथी की मस्ती में कोई कमी नहीं थी। हाथी जब दोनों शिष्यों के पास आया। तब बोधानंद ने कहा – मित्र ! एक तरफ हो जाओ, हाथी अपनी ओर ही आ रहा है। तब आज्ञानंद ने कहा – हाथी है तो क्या हुआ उसमें भी परमेश्वर का वास है। हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। बोधानंद तो वहाँ से जरा एक तरफ हट गया। किन्तु आज्ञानंद वही खड़ा रहा। तब महावत ने चिल्लाकर कहा – एक तरफ हट जाओ, परन्तु आज्ञानंद नहीं हटा। उसे रास्ते में खड़ा देख हाथी ने सूड से उठाकर उसे एक तरफ फैंक दिया और आज्ञानंद को बहुत चोट आई। ___आश्रम में आकर आज्ञानंद ने गुरुजी को सारा वृतान्त सुनाया। और पूछा – मैं भी नारायण, हाथी भी नारायण। फिर नारायण ने नारायण को क्यों फेंक दिया।

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