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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९
जीवन का मोल समझो एक व्यापारी ने हेर-फेर के बाद जब तीन लाख अशर्फियाँ जमा कर लीं, तो उसकी इच्छा हुई कि वह इस दौलत से अपने सभी शौक पूरे कर ले । खूब ऐश उड़ाये । उसने हमेशा की तरह तिजोरी खोली और सभी अशर्फियाँ गिनना शुरु ही किया था कि यमराज को खड़ा पाया। वह व्यापारी को लेने आया था। यह सुनकर उसके होश उड़ गए। आखिर वह यमराज से मिन्नतें करने लगा कि उसे थोड़े समय और जी लेने दिया जावे ।
उसने यमराज से जीवन के लिए केवल तीन दिन और माँगे तथा बदले में वह एक लाख मोहरें देने को तैयार हो गया, किन्तु मौत का सौदागर यमराज न माना । इस पर व्यापारी ने यमराज से जीने के लिए केवल दो दिन माँगे
और बदले में दो लाख अशर्फियाँ देने को राजी हो गया, पर यमराज टस से मस न हुआ, यहाँ तक की व्यापारी की सारी सम्पत्ति लेने से इंकार कर दिया । ___अब व्यापारी ने कहा कि तुम मुझे एक छोटा सा पत्र ही लिख लेने दो, फिर मुझे यमलोक ले जाना । इस पर मृत्यु देवता मान गया। व्यापारी द्वारा एक कागज पर लिखा सन्देश इस प्रकार था- “हे इन्सान ! अपनी जिन्दगी के हर पल का फायदा उठा। अच्छी तरह जी। अच्छे काम कर। दूसरों पर दया कर। सन्तोष से जो प्राप्त हो उसे सार्थक समझ। वक्त का मूल्य पैसे से अधिक है। आज मैं तीन लाख अशर्फियों के बदले जीवन के दो पल भी नहीं खरीद सका।" ...... ___ जीवन का एक क्षण करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ देने पर भी नहीं मिलता। अत: जीवन का मोल समझो और अपने स्वभाव की दृष्टि, स्वभाव का ज्ञान व स्वभाव का आश्रय करना ही जीव का एकमात्र कार्य है/कर्तव्य है। इसके लिए प्रतिदिन देव-शास्त्र-गुरु की मंगल आराधना, स्वाध्याय आदि द्वारा अपने आत्मस्वभाव का निर्णय करना चाहिए। तभी मनुष्य जीवन की सार्थकता है।