Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ तथा शुभलक्षणों से सुशोभित इन्द्र नाम का पुत्र था। तथा धर्म के प्रभाव से अनिन्दिता के रूपवान, गुणवान व ज्ञान-विज्ञान में पारगामी उपेन्द्र नाम का पुत्र था। जिस प्रकार पापों का नाश करने वाले मुनिराज सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र से सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार शुत्रुओं को जीतने वाला वह राजा दोनों सुन्दर पुत्रों से शोभायमान होता था। ___उसी नगर में सात्यकी नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी ब्राह्मणी का नाम जम्बू था। तथा गुणों से सुशोभित सत्यभामा नाम की पुत्री थी। धरनीजड़ का दासी पुत्र कपिल जनेऊ धारण करके ब्राह्मण के रूप में रत्नसंचयपुर नगर में आया। उसको रूपवान तथा वेदों का पारंगत जानकर सात्यकी ब्राह्मण अपने घर ले आया और उसके साथ अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कर दिया। जब रात्रि में सत्यभामा को कपिल की नीच चेष्टाओं का पता लगा तब उसको ‘यह उच्च कुल का नहीं हैं यह चिन्ता होने लगी। वह विचारने लगी कि मनुष्यों को जहर पी लेना अच्छा है सर्प की संगति अच्छी है, जलती हुई अग्नि में कूद पड़ना अथवा पानी में कूद पड़ना अच्छा है, परन्तु नीच मनुष्यों की संगति करना अच्छा नहीं है - ऐसा जानकर वह पवित्र हृदय वाली धीर वीर सती सत्यभामा कपिल से विरक्त हो गई, परन्तु अपने मन में हमेशा दुःखी रहने लगी। इधर कर्म संयोग से धरणीजड़ गरीब हो गया। जब उसने कपिल के वैभव की बात सुनी तो वह धन की अभिलाषा से उसके पास आया। कपिल ने लोगों से कहा कि यह मेरे पिता हैं, तो लोगों ने उसका आदर-सत्कार किया। वह ब्राह्मण सुख पूर्वक कपिल और सत्यभामा के साथ रहने लगा। ____ एक दिन सत्यभामा धरणीजड़ ब्राह्मण को बहुत सारा धन देकर अत्यन्त विनय से कपिल के कुल के सम्बन्ध में पूछने लगी। ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि हे पुत्री ! इस दुष्ट ने ब्राह्मण का वेश कपटी धारण किया है। आचार्य कहते हैं कि देखो ! कुटिलता से पैदा हुआ मूरों का महापाप भी कुष्ट रोग के समान प्रगट हो जाता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84