Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 63
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ सत्य का प्रभाव पुराने समय में एक बूंखार डाकू था। वह लोगों को मारता, लूटता, डाके डालता और उनका धन लूट लेता; उसके पुण्योदय से एक दिन उसे एक मुनिराज के दर्शन हो गये, उसकी उनपर श्रद्धा भी थी। वे उसे अच्छे भी लगते थे। जब वह धर्मोपदेश की अभिलाषा से महाराज के पास बैठा तब महाराज ने पूछा - "तुम जो लूट के धन लाते हो, उसे तुम्हारे सारे परिवार के लोग खाते हैं; उससे तुम्हें जो पाप लगता हैं, उसके पाप में भी तुम्हारे परिवार के सदस्य हिस्सा लेंगे? तुम घर में पूछना।" ___डाकू घर गया और उसने सबसे पूछा कि तुम भी मेरे पाप के भागी बनोगे? सब ने मना कर दिया। उसने मुनिराज से कहा - स्वामिन् ! मेरा डाका डालना नहीं छूट सकता, इसलिए पाप को कम करने के लिए क्या करूँ ? मुनिराज ने कहा कि जो तुम झूठ बोलकर पाप को बढ़ाते हो, उस पाप को घटाने के लिए झूठ बोलना छोड़ दो। ___ उसने झूठ बोलना छोड़ दिया। अगले दिन वह राजमहल में चोरी करने गया। पहरेदार ने पूछा – कहाँ जा रहे हो ? डाकू ने कहा डाका डालने के लिए। पहरेदार ने राजकुमार समझ कर जाने दिया। जब वह सन्दूक लिए हुए बाहर निकला तो पहरेदार ने पूछा किस चीन की सन्दूक ले जा रहे हो ? डाकू ने कहा कि हीरे की। पहरेदार ने पूछा किस से पूछ कर ? डाकू ने कहा डाका डालकर । पहरेदार ने कहा -चिढ़ते क्यों हो, जाओ। सुबह हुई तब पता चला कि हीरे का सन्दूक गायब है। तब पहरेदार ने रात की सारी घटना राजा को सुनाई। राजा ने डाकू का पता लगा कर उसकी सच्चाई से खुश होकर उसे जिन्दगी भरके लिए खर्च दे दिया और नौकरी भी दे दी। अब डाकू के पास धन हो गया और उसने डाका डालने की आदत छोड़ दी। बाद में वह मुनि बन गया।

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