Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 53
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ हैं, जिस पर कि वह लटका हुआ है। उसके नीचे उस बड़े अन्ध कूप में, मुँह फाड़े विकराल दाढ़ों के बीच लम्बी-लम्बी भयंकर जिह्वा लपलपा रहा है जिनकी। लाल-लाल नेत्रों से, ऊपर की ओर देखते हुए चार भयंकर अजगर मानों इसी बात की प्रतीक्षा में हैं कि कब डाल कटे और उनको एक ग्रास खाने को मिले। उन बेचारों का भी क्या दोष, उनके पास पेट भरने का एक यही तो साधन है। पथभ्रष्ट अनेकों भूले भटके पथिक आते हैं और इस मधुबिन्दु के स्वाद में खोकर अन्त में उन अजगरों के ग्रास बन जाते हैं। सदा से ऐसा होता आ रहा है, तब आज भी ऐसा ही क्यों न होगा ? गड़ गड़ गड़, वृक्ष हिला। मधु-मक्षिकाओं का सन्तुलन भंग हो गया। भिनभिनाती हुई, भन्नाती हुई वे उड़ीं! इस नवागन्तुक ने ही हमारी शान्ति में भंग डाला है। चिपट गईं वे सब उसको, कुछ सर पर, कुछ कमर पर, कुछ हाथों में, कुछ पावों में। सहसा घबरा उठा वह,....यह क्या ? उनके तीखे डंकों की पीड़ा से व्याकुल होकर एक चीख निकल पड़ी उसके मुँह से, प्रभु ! बचाओ मुझे। पुनः वही मधुबिन्दु। जिस प्रकार रोते हुए शिशु के मुख में मधु भरा रबर का निपल देकर माता उसे सुला देती है, और वह शिशु भी इस भ्रम से कि मुझे स्वाद आ रहा है, सन्तुष्ट होकर सो जाता है; उसी प्रकार पुनः खो गया वह उस मधुबिन्दु में और भूल गया उन डंकों की पीड़ा को। पथिक प्रसन्न था, पर सामने बैठे परम करुणाधारी, शान्तिमूर्ति जगत हितकारी, प्रकृति की गोद में रहने वाले, निर्भय गुरुदेव मन ही मन उसकी इस दयनीय दशा पर (करुणाद्र) आँसू बहा रहे थे। आखिर उनसे रहा न गया। उठकर निकल आये। ___“भो पथिक ! एक बार नीचे देख, यह हाथी जिससे डरकर तू यहाँ आया है, अब भी यहाँ ही खड़ा इस वृक्ष को उखाड़ रहा है। ऊपर वह देख, सफेद व काले चूहे तेरी इस डाल को काट रहे हैं। नीचे देख वे अजगर

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