Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ जिनशासन में निदान करना अति निन्दनीय है; लेकिन वह कुबुद्धि नहीं समझ सका और मरकर नन्दी सेठ की पत्नी इन्दुमुखी के गर्भ में आया। बड़े-बड़े राजाओं ने उसे नाना प्रकार के निमित्तों से महापुरुष समझा और जन्म होते ही अनेक राजाओं ने इसके पिता के पास अनेक उपहार भेजे। उसका नाम रतिवर्धन रखा गया। सभी राजा, यहाँ तक कि कौशाम्बी नगरी का राजा इन्द्र भी उसकी सेवा में तत्पर रहने लगा। उधर उसका पूर्वभव का बड़ा भाई मरकर स्वर्ग गया। उसने छोटे भाई के जीव को सम्बोधने के लिये क्षुल्लक का रूप धारण किया और रतिवर्धन के पास आया; किन्तु रतिवर्धन धन-वैभव के मद में अंधा हो गया था। अतः उसने क्षुल्लक को घर के भीतर नहीं आने दिया। तब उस देव ने क्षुल्लक का रूप छोड़कर रतिवर्धन का ही रूप धारण कर लिया और असली रतिवर्धन को पागल जैसा बनाकर जंगल में दूर खदेड़ दिया, फिर उसके पास जाकर बोला कि अब कहो, तुम्हारा क्या हाल है? रतिवर्धन उसके चरणों में झुक गया। तब उस देव ने उसे पूर्वभव की बात बतायी कि पहले हम दोनों भाई थे, मैं बड़ा था और तू छोटा था, हम दोनों ने क्षुल्लक के व्रत धारण किये थे। तूने नन्दी सेठ का पुत्र होने का निदान किया था। अतः मरने के बाद तू वही हुआ। तूने धन-वैभव प्राप्त किया और मैं मरकर स्वर्ग पहुँचा हूँ। देव के मुख से यह वृत्तान्त सुनकर रतिवर्धन प्रतिबोध को प्राप्त हुआ और उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति हो गयी। वह मुनि हो गया। मुनिव्रत का पालन करके रतिवर्धन का जीव स्वर्ग में अपने भाई के पास जाकर देव हुआ। इसके बाद वे दोनों भाई स्वर्ग से आकर विजय नामक नगर में उर्व और उर्वस नाम के राजकुमार हुए। वे दोनों राजकुमार जिनधर्म की आराधना करके पुनः स्वर्ग में देव हुए। फिर वहाँ से आकर तुम दोनों भाई इन्द्रजित् एवं मेघवाहन हुए हो। रतिवर्धन की माता इन्दुमुखी ही इस भव में मन्दोदरी हुई है। इसप्रकार अपने पूर्वभव सुनकर वे दोनों भाई संसार की माया से

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84