Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 36
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ बोला कि “अरे भाग्यवान् ! यह अपना पुत्र तो जीवित है, मरा नहीं है, अतः अब इसका भलीप्रकार लालन-पालन करो।" सेठानी सुनन्दा भी यह जानकर खुश हुई कि अहा ! “मेरा पुत्र जीवित पुण्य-पाप के उदय में भी कैसी-कैसी चित्र-विचित्र परिस्थितियाँ बनती हैं ? कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। एक ओर ऐसा पापोदय, जिसके उदय में भयंकर एवं दुःखद प्रतिकूल परिस्थितियों की भरमार और दूसरी ओर पुण्योदय भी ऐसा कि मानवों की तो बात ही क्या ? देवीदेवता भी सहायक हो जाते हैं, सेवा में उपस्थित हो जाते हैं। ___ यद्यपि पापोदय के कारण जीवन्धरकुमार का जन्म श्मशान (मरघट) में हुआ, जन्म के पूर्व ही पिता सत्यन्धर स्वर्गवासी हो गये, माँ विजया भी असहाय हो गई; परन्तु साथ ही पुण्योदय भी ऐसा कि सहयोग और सुरक्षा हेतु स्वर्ग से देवी भी दौड़ी-दौड़ी आ गई। पुण्यवान जीव कहीं भी क्यों न हो, उसे वहीं अनुकूल संयोग स्वतः सहज ही मिल जाते हैं। विजयारानी के प्रसव होते ही तत्काल चम्पकमाला नामक देवी धाय के भेष में वहाँ श्मशान में जा पहुँची। उसने अपने अवधिज्ञान से यह जाना कि - इस बालक का लालन-पालन तो राजकुमार की भाँति शाही ठाटबाट से होने वाला है। अतः देवी ने विजयारान' को MAlacilitSADO

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