Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ ____ यात्रा की थकान मिटाने के लिये वे वन में एकान्त स्थान पर विश्राम कर रहे थे। इतने में ही अनंगतिलका नाम की एक विद्याधरी युवती सामने आई और वह उन्हें देखते ही कामासक्त हो गई। उसने जीवन्धर को लुभाने के लिए स्त्रीजन्य मायाचारी के बहुत प्रयास किये; किन्तु जीवन्धर अडिग रहे। इतने में ही उस युवती को अपने पति की आवाज सुनाई पड़ी, जो उसके वियोग में पागल जैसा आर्तनाद करता हुआ उसी ओर आ रहा था। उसकी आवाज सुनते ही वह युवती वहाँ से चली गई। युवक को दु:खी देख जीवन्धरकुमार ने उसे बहुत समझाने का प्रयास किया, तथापि वह उसके वियोग में विह्वल ही रहा। तदनन्तर जीवन्धर यात्रा करते हुए हेमाभा नगरी में पहुँचे और वहाँ के राजा दृढ़मित्र के अनुरोध से राजकुमारों को धनुर्विद्या की कला सिखायी। राजा ने प्रसन्न होकर अपनी कन्या कनकमाला का विवाह जीवन्धरकुमार के साथ करा दिया। कनकमाला से विवाह करने के पश्चात् जीवन्धर अनासक्त भाव से हेमाभा नगरी में निवास कर रहे थे कि उन्हें एक दिन उनके भाई नंदाढ्य के अकस्मात् आने का समाचार मिला। वे शीघ्र ही भाई नंदाढ्य से वहाँ मिलने गये और नंदाढ्य को पाकर ए सन्नतापूर्वक उसके गले मिले। कुशलक्षेम पूछने के बाद उन्होंने नंदाढ्य से अकस्मात आने का कारण पूछा। ___ उत्तर में नंदाढ्य ने बताया कि – ‘काष्ठांगार ने आपको मार डाला है।' यह ज्ञात होते ही मैं भाभी गन्दर्भदत्ता के पास गया। वहाँ भाभी को प्रसन्नचित्त देख मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ कि आपके मृत्यु का समाचार जानकर भी भाभी कैसे प्रसन्न हैं ? आखिर क्यों ? पूछने पर पता चला कि उन्होंने अपनी विद्या के बल से यह सब पहले ही ज्ञात कर लिया था कि आप यक्षेन्द्र द्वारा सुरक्षित हैं और सुख-शान्ति से रह रहे हैं। फिर मेरी आपसे मिलने की इच्छा जानकर उन्होंने ही यहाँ मुझे विद्याबल से आपके पास भेज दिया है। इसतरह यहाँ उनकी छोटे भाई से भेंट भी हुई।

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84