Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 47
________________ 45 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ पर गोविन्दराज के विचारों को और गति प्राप्त हुई। इसी समय दुष्ट काष्ठांगार का पत्र राजा गोविन्दराज के पास पहुँचा। उसमें लिखा था कि “महाराजा सत्यन्धर का मरण मदोन्मत्त हाथी के कारण हुआ था; तथापि मेरे पापोदय के कारण उनके मरण का कारण प्रजा मुझे मान रही है। अत: आप मुझसे आकर मिलोगे तो मैं निशल्य हो जाऊँगा।" पत्र पढ़कर दुष्ट काष्ठांगार के खोटे अभिप्राय का पता गोविन्दराज को चल गया। गोविन्दराज ने भी अपनी कूटनीतिज्ञ चतुराई के साथ “काष्ठांगार के साथ हमारी मित्रता हो गई है"; ऐसा ढिढोरा पिटवा दिया और अपनी सेना के साथ राजपुरी नगरी के पास जाकर एक उद्यान में ठहर गये। वहीं गोविन्दराज ने अपनी कन्या लक्ष्मणा के लिये स्वयंवर मण्डप की रचना की और घोषणा करा दी कि “जो चन्द्रकयंत्र को भेदन करेगा, उसी के साथ लक्ष्मणा का विवाह सम्पन्न होगा।" घोषणा सुनकर अनेक धनुर्धारी राजाओं ने स्वयंवर मण्डप में आकर उस यंत्र को भेदन करने का प्रयास किया; पर सफलता किसी को नहीं मिली। अन्त में जीवन्धर आलातचक्र द्वारा उसका भेदन करने में सफल हुए। इस प्रसंग पर ही राजा गोविन्दराज ने जीवन्धर का यथार्थ परिचय सबको दिया - “जीवन्धर महाराजा सत्यन्धर के राजपुत्र और मेरे भानजे हैं। जीवन्धरकुमार के इस परिचय से दुष्ट काष्ठांगार अत्यन्त भयभीत हुआ तथा राजा गोविन्दराज को दिए निमंत्रण पर पश्चाताप करने लगा; तथापि उसने अन्य राजाओं के बहकावे में आकर जीवन्धर के साथ युद्ध की घोषणा कर दी। फलस्वरूप युद्ध में काष्ठांगार मारा गया। तब राजा गोविन्दराज ने जीवन्धर का राजपुरी नगरी में वैभव के साथ राज्याभिषेक किया; जिससे सब को आनन्द हुआ। तदनन्तर गोविन्दराज ने अपनी कन्या लक्ष्मणा' का विवाह जीवन्धर के साथ हर्षोल्लासपूर्वक सम्पन्न करा दिया। राजा जीवन्धर नीति-न्याय पूर्वक राजपुरी नगरी में राज्य करने लगे।

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