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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९
संसार-वृक्ष देख तेरी वर्तमान दशा का एक सुन्दर चित्र दर्शाता हूँ। एक व्यापारी जहाज में माल भरकर विदेश को चला। अनेकों आशायें थीं उसके हृदय में। पर उसे क्या खबर थी कि अदृष्ट उसके लिए क्या लिये बैठा है। दूर क्षितिज में से साँय-साँय की भयंकर ध्वनि प्रगट हुई, जो बराबर बढ़ती हुई उसकी ओर आने लगी। घबरा गया वह, हैं ! यह क्या ? तूफान सरपर आ गया। आँधी का वेग मानों सागर को अपने स्थान से उठाकर अन्यत्र ले जाने की होड़ लगाकर आया है। सागर ने अपने अभिमान पर इतना बड़ा आघात कभी न देखा था। वह एकदम गर्ज उठा, फुकार मारने लगा और उछल-उछलकर वायुमण्डल को ताड़ने लगा।
वायु व सागर का यह युद्ध कितना भयंकर था। दिशायें भयंकर गर्जनाओं से भर गईं। दोनों नये-नये हथियार लेकर सामने आ रहे थे। सागर के भयंकर थपेड़ों से आसमान का साहस टूट गया। वह एक भयंकर चीत्कार के साथ सागर के पैरों में गिर गया। घडडडड़ ! ओह ! यह क्या आफ़त आई ? आसमान फट गया और उसके भीतर से क्षणभर को एक महान प्रकाश की रेखा प्रगट हुई। रात्रि के इस गहन अन्धकार में भी इस वज्रपात के अद्वितीय प्रकाश में सागर का क्षोभ तथा इस युद्ध का प्रकोप स्पष्ट दिखाई दे रहा था। व्यापारी की नब्ज़ ऊपर चढ़ गई, मानों वह निष्प्राण हो चुका है। ___इतने ही पर बस क्यों हो ? आसमान की इस पराजय को मेघराज सहन न कर सका। महाकाल की भाँति काली राक्षस सेना गर्जकर आगे बढ़ी और एक बार पुनः घोर अन्धकार में सब कुछ विलीन हो गया। व्यापारी अचेत होकर गिर पड़ा। सागर उछला, गड़गड़ाया, मेघराज ने जलवाणों की घोर वर्षा की। मूसलाधार पानी पड़ने लगा। जहाज में जल भर गया। व्यापारी अब भी अचेत था। दो भयंकर राक्षसों के युद्ध में बेचारे