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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ अपमानित हाथी ने खाना-पीना छोड़ दिया था। काष्ठांगार ने जीवन्धरकुमार को बन्दी बनाने के लिए गन्धोत्कट के घर पर सेना भेजी। जीवन्धरकुमार ने सेना से युद्ध करना चाहा; किन्तु सेठ गन्धोत्कट ने जीवन्धरकुमार को युद्ध करने से रोक दिया और उन्होंने स्वयं जीवन्धरकुमार के हाथ बांधकर काष्ठांगार के पास भेज दिया। जीवन्धरकुमार के हाथ बँधे हुए देखकर भी क्रोधी काष्ठांगार ने जोवन्धरकुमार को मारने के लिये सेना को आदेशित किया। जीवन्धरकुमार ने यक्षेन्द्र का स्मरण किया। स्मरण करते ही यक्षेन्द्र वहाँ उपस्थित हुआ और जीवन्धरकुमार को अपने साथ चन्द्रोदय पर्वत पर ले गया और वहाँ पर उनका विशेष आदर सत्कार किया। उन्हें निम्न तीन मंत्र दिये प्रथम मंत्र में - इच्छानुकूल वेष बदलने की शक्ति थी। दूसरे मंत्र में - मनमोहक गाना गाने की शक्ति थी तथा तीसरे मंत्र में - हालाहल विष को दूर करने की शक्ति थी। और कहा कि –“आप एक वर्ष में अपना राज्य प्राप्त करोगे और राज्य सुख भोगकर इसी भव से मोक्ष प्राप्त करोगे।"
चन्द्रोदय पर्वत से जीवन्धरकुमार तीर्थ वन्दना को निकले, मार्ग में क्या देखते हैं कि एक जंगल में भयंकर दावाग्नि लगी हुई है, उसमें हाथियों के समूह को जलते हुए देखकर उन्हें उनकी रक्षा का भाव उत्पन्न हुआ। पुण्यपुरुष जीवन्धरकुमार की भावनानुसार तथा हाथियों के पुण्योदयानुसार उसी समय मूसलाधार वर्षा हुई, जिससे हाथियों की रक्षा हो गई। सत्य ही कहा है कि - "पुण्यवान की इच्छा सफल ही होती है।"
तीर्थ वन्दना करते हुए जीवन्धरकुमार चन्द्राभा नगरी पहुँचे। वहाँ के राजा धनमित्र की पुत्री पद्मा सर्पदंश से मरणासन्न अवस्था में थी। जीवन्धर ने 'विषहान मंत्र' से राजकुमारी पद्मा को सर्पविष से मुक्त किया। राजा धनमित्र ने प्रसन्न होकर जीवन्धरकुमार को आधा राज्य दिया एवं राजकुमारी पद्मा का उनसे विवाह कर दिया।
इसप्रकार जीवन्धरकुमार ने यक्षेन्द्र से प्राप्त मंत्र शक्तियों का सदुपयोग