Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 40
________________ जैाधर्म की कहानियाँ भाग-१९ .... 38 तुम्हारी नौका डूबी नहीं है, वह तो सुरक्षित है। मैं गान्धार देश की नित्यालोक नगरी के राजा गरुड़वेग का सेवक हूँ, उनके साथ आपकी परम्परागत मित्रता है। उन्हें अपनी पुत्री के विवाह के लिये आपके सहयोग की अपेक्षा है। अतः उन्होंने मुझे आपको अपने पास लाने का निर्देश दिया था। समय का अभाव एवं अन्य उपाय न होने से मैंने आपके मन में नौका नष्ट होने का भ्रम उत्पन्न किया और आपको यहाँ ले आया हूँ। अब आप प्रसन्न होकर अपने मित्र गरुड़वेग से मिलिये और उनकी समस्या के समाधान में सहयोग दीजिये।" श्रीदत्त सेठ और राजा गरुड़वेग का बहुत समय बाद मिलन हुआ, राजा गरुड़वेग ने श्रीदत्त को अपनी कन्या गन्धर्वदत्ता सौंपते हुए कहा - "राजपुरी नगरी में वीणा वादन में जो इसे जीतेगा वही इसका पति होगा।" __ श्रीदत्त गन्धर्वदत्ता को लेकर घर आये और अपनी पत्नी को सब समाचार सुनाया। श्रीदत्त ने राजाज्ञा लेकर स्वयंवर मण्डप की रचना की और राजपुरी नगरी में घोषणा कराई कि "जो मेरी कन्या गन्धर्वदत्ता को वीणा वादन में हरायेगा, वही उसका पति होगा।" ___ जब गन्धर्वदत्ता के साथ वीणा-वादन में सभी प्रत्याशी हार गये, तब जीवन्धरकुमार ने अपनी घोषवती वीणा बजाकर गन्धर्वदत्ता पर विजय प्राप्त की, परिणाम स्वरूप उनका विवाह गन्धर्वदत्ता से सम्पन्न हुआ। इस घटना से काष्ठांगार को ईर्षा उत्पन्न हुई, उसने उपस्थित सब राजाओं को जीवन्धरकुमार के विरुद्ध भड़काया और उन्हें जीवन्धरकुमार से युद्ध करने की प्रेरणा दी; पर सभी राजा युद्ध में जीवन्धरकुमार से पराजित हुए। ___ वसन्त ऋतु में एक दिन जीवन्धर जलक्रीड़ा देखने नदी किनारे गये हुए थे। वहाँ एक कुत्ते ने यज्ञ सामग्री को जूठा कर दिया था, जिसके कारण दुष्ट लोगों ने उस कुत्ते को मार-मारकर मरणासन्न कर दिया था। उस कुत्ते को जीवन्धरकुमार ने णमोकार महामंत्र सुनाया; जिससे वह कुत्ते का जीव मर कर यक्षेन्द्र हो गया। कृतज्ञतावश यक्षेन्द्र जीवन्धरकुमार के पास आया

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