Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 34
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ प्रातः रानी ने अपने नित्य कर्त्तव्यों से निबटकर राजा से स्वप्नों का फल पूछा। राजा ने प्रथम स्वप्न को छोड़कर शेष दो स्वप्नों का फल इस प्रकार बताया- (१) तुम्हें शीघ्र ही पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी एवं (२) उसकी आठ सुन्दर और सम्पन्न घराने की कन्याओं से शादी होगी। राजा द्वारा प्रथम स्वप्न का फल न बताये जाने पर रानी ने अनुमान लगाया कि प्रथम स्वप्न के फल में अवश्य ही रम्जा का अनिष्ट गर्भित है; अत: वह अत्यन्त दुःखी हुई। कुछ काल पश्चात् रानी को गर्भवती जानकर राजा ने अपना मरण निकट है - यह जान लिया; अतः उन्होंने गर्भस्थ शिशु एवं रानी की रक्षार्थ एक केकीयंत्र (एक प्रकार का वायुयान) बनवाया और रानी को केकीयंत्र में बिठाकर आकाश में घुमाने का अभ्यास प्रारम्भ किया। इसी बीच काष्ठांगार को विचार आया कि “राज्य के सभी कार्य तो मैं ही निष्पन्न करता हूँ, फिर राजा सत्यन्धर कहलाए - यह कहाँ की रीति है; क्यों न मैं राजा का वध करके स्वयं ही राजा बन जाऊँ।" उसने अपना यह खोटा विचार “यह कहते हुए कि यह बात मुझे एक देव बार-बार कहता है" जब अन्य मंत्रियों को बताया, तब लगभग सभी मंत्रियों ने इस विचार का विरोध किया; परन्तु काष्ठांगार के साले मंथन ने उसके इस खोटे विचार का समर्थन किया और काष्ठांगार ने राजा सत्यन्धर को मारने के लिये सेना को आदेश दे दिया। सेना द्वारा अपने पर आक्रमण के समाचार सुनकर राजा ने सर्वप्रथम रानी एवं गर्भस्थ पुत्र के रक्षार्थ रानी को केकीयन्त्र में बिठाकर यंत्र को आकाश मार्ग से अन्यत्र भेज दिया। भेजने के पूर्व राजा ने रानी विजया को कुछ आवश्यक उद्बोधन दिया, जो इसप्रकार है - “हे रानी ! तुम शोक मत करो। जिसका पुण्य क्षीण हो जाता है, उसको उदय में आये पाप कर्म के फल में प्राप्त दुःख को तो भोगना ही पड़ता है। अपना भी अब पुण्य क्षीण हो गया है और पाप का

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