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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९
श्री जीवन्धरस्वामी का चरित्र श्री महावीरस्वामी के समय में श्री जम्बूस्वामी से पूर्व हुए
कामदेव पदवी धारक, तद्भव मोक्षगामी
पुण्य-पाप की विचित्रता ऊँचा-नीचा जो करे, उसको कहते कर्म। कर्म रहित जो अवस्था, उसको कहते धर्म॥ पुण्य-पाप है कर्म, ऊँचा-नीचा वह करे।
धर्म कहें उसको प्रभू जो उत्तम सुख में धरे॥ जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में हेमांगद देश की राजपुरी नामक नगरी के राजा सत्यन्धर यद्यपि गूढ़ रहस्यों को जाननेवाले दूरदर्शी एवं विवेकी थे, तथापि होनहार के अनुसार वे
AORTER अपनी रानी विजया पर LEHERONTER इतने अधिक आसक्त थे कि वे सदा उनके ही साथ समय बिताया करते थे। इसी कारण उन्होंने एक दिन मंत्रियों के समझाने पर भी उनकी एक न मानी
और राज्य की सम्पूर्ण सत्ता मंत्री काष्ठांगार को सोंप दी। - इसप्रकार राज-काज के कार्यों की उपेक्षा कर वे रानी के मोह में ही मग्न हो गये।
एक दिन रानी विजया ने रात्रि के पिछले प्रहर में तीन स्वप्न देखे(१) एक बड़ा अशोक वृक्ष देखते-देखते ही नष्ट हो गया। (२) एक नवीन एवं सुन्दर अशोक वृक्ष देखने में आया। (३) आकर्षक आठ पुष्पमालाएँ दिखाई दी।
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