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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ समझाया पर वे नहीं माने। मानते भी कैसे ? वे अपनी परम्परा को तोड़ने में अपने धर्म का नाश मानते थे। गुरुजी ने कर्णसिंह को विद्यालय से नाम काटकर उसे बाहर कर दिया।
अब सब बच्चों की परेशानी मिट गई थी। चोरी की शिकायतें बंद हो गयी थी। अध्यापकों की भी परेशानी मिट गयी थी। ___मदनसिंह व कर्णसिंह आज भी उस क्षेत्र में अपनी परम्परा को कायम रखे हुए हैं। कई बार जेल की सजा भी काट रहे हैं। समाज में उनका कोई स्थान नहीं रहा है, परन्तु हिम्मतसिंह ने अच्छा अध्ययन किया। उसे पिता की लताड़ भी कई बार मिली, किन्तु उसने भय से रहित होकर निडरता से अपनी पढ़ाई प्रारंभ रखी। उसने बैंक की प्रतियोगिता-परीक्षा दी, उसमें भी काफी लगन से कड़ी मेहनत कर अच्छे अंक प्राप्त किये और साक्षात्कार में भी उत्तीर्ण होकर आज वह बैंक आफ बडौदा में रोकड़िये पद पर कार्यरत है। उसने समाज में भी अपना अतिशीघ्र ही स्थान बना लिया।
देखो...दोनों भाइयों में अन्तर। एक भाई अपनी गलत परम्परा को निभाने से आये दिन जेल जाता है तो एक भाई अपनी गलत परम्परा को जानकर उसे तोड़कर अच्छे पथ पर लगकर सुन्दर कार्य करता हुआ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा है।
जगत के परम्परावादी लोग उस व्यक्ति को श्रेष्ठ कहते हैं जो अपनी गलत परम्परा को कायम रखता है और जो अपनी गलत परम्परा को तोड़ता है उसे हीन व कुल बिगाड़नेवाला कहते हैं। परन्तु यदि मैं आपसे पूछू – कर्णसिंह ने अपनी परम्परा को बनाये रखकर अच्छा किया या हिम्मतसिंह ने अपनी परम्परा को तोड़कर अच्छा किया ? आपके मुख से सहज ही उत्तर आयेगा कि हिम्मतसिंह ने ठीक किया। ___ यद्यपि परम्परा को तोड़ना उतना ही कठिन है जितना लोहे की छड़ी को हाथों से तोड़ना। तथापि सत् समझ लेने पर गलत परम्परा को तोड़ना उतना ही सरल है जितना एरण्ड की लकड़ी को तोड़ना। आज