Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 28
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ ___ 26 स्पष्ट हिंसा का दोष लगता है। इससे हमें सदैव बचना चाहिए। अब हमें यह निर्णय स्वयं ही करना है कि कर्णसिंह बनकर संसार (चारगति) रूपी जेल में जाना है या हिम्मतसिंह बनकर अनंत सुखशांतिमय अपनी स्वाधीन स्वाभाविक सिद्ध दशा को प्राप्त करना है। ___ आज हमारी समाज में जो ऐसी मिथ्या परम्पराएँ चल रही हैं, वह अवश्य ही भविष्य में अतिशीघ्र ही निरन्तर क्षीणता को प्राप्त होकर समाप्त हो जायेंगी और उन्हें समाप्त होना ही चाहिए। ध्यान रहे, यहाँ मिथ्या परम्पराओं के नष्ट होने की बात है, सम्यक् परम्पराओं की नहीं। कृपया इसमें अपने पक्ष का व्यामोह छोड़कर विचार करें तो अवश्य ही सत्यता हाथ आवेगी। अत: इस विषय पर सभी को एकबार अवश्य गहराई से विचार करना चाहिए। - डॉ. महावीर जैन जिनवाणी शिव सोपानी है, जिनवाणी शिव सोपानी......... प्रथम चरण है सम्यक् दर्शन जो भविजन पहिचानी है।जिनवाणी। द्वितीय चरण हैं पाँच अणुव्रत पाँच पाप की हानी है।जिनवाणी।। तृतीय चरण है सामायिकव्रत ताकूँ ध्यावें ज्ञानी है।जिनवाणी।। चौथा चरण चढ़े जब भविजन प्रोषधव्रत की ठानी है।जिनवाणी॥ पंचम सचित त्याग में लेते प्रासुक भोजन पानी है जिनवाणी॥ छठवें चरण तजें निशिभोजन नवकोटी से ज्ञानी है।जिनवाणी।। चरण सातवें ब्रह्मचर्य व्रत लहें तजें सब रानी है।जिनवाणी॥ चरण आठवें होंय वे-खटक तज आरम्भ निशानी है।जिनवाणी॥ नवमें आवश्यक वस्त्रादिक लेता भोजन पानी है।जिनवाणी॥ दसवें चरण चढ़े जब भविजन अनुमति तजे विरानी है।जिनवाणी॥ ग्यारहवें जब चरण चढ़े उद्दिष्ट त्याग तब आनी है। जिनवाणी।। बारहवें जब चरण चढ़े मुनिव्रत पालें सुखदानी है।जिनवाणी॥ तेरह त्रेसठ प्रकृति नाशकर होवे केवलज्ञानी है।जिनवाणी॥ चरण चौदहवें शुक्लध्यान गह पावे शिव रजधानी है।जिनवाणी। - प्रेमचन्द जैन “वत्सल" -

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