Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 26
________________ 24 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ हमारे समाज में भी कुछ ऐसी ही गलत परम्पराएँ चल रही है, जिनके बारे में हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए। दशलक्षण पर्व एक महान पर्व है। यह सार्वभौमिक, सार्वकालिक व सार्वजनिक पर्व है। यह पर्व वर्ष में तीन बार आता है, किन्तु सम्पूर्ण भारत भर में दिगम्बर जैन समाज में यह पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ एक बार ही भादवा सुदी पंचमी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। इस पर्व में लम्बे समय से कई सत् व असत् परम्पराएँ चली आ रही हैं। सत् परम्पराएँ तो चलनी ही चाहिए, किन्तु असत् परम्पराओं को रोकना चाहिए; परन्तु जो असत् परम्पराओं को तोड़ता है, रोकता है, उस पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर उसे ऐसा करने से रोक दिया जाता है। इस महान पर्व में भादवा सुदी दशमी के दिन मंदिर में अग्नि में धूप खेने की परम्परा कई वर्षों से चली आ रही है। लोग आते-जाते चाहे जैसी धूप उस अग्नि में खेकर धर्म मानते हैं। कई जनों को तो धर्म या अधर्म से भी लेना-देना नहीं है। मात्र देखादेखी बिना विचारे खेने का कार्य करते हैं। इन्हें भीड़ अच्छी लगती है। इसमें सभी लोग शामिल होते हैं। चाहे पूजा व प्रवचन में शामिल न हों। इसमें जरूर शामिल होकर धूप को अग्नि में खेकर अपने कर्म को जलाना चाहते हैं। क्या धूप को अग्नि में खेने से भी कर्म जलते हैं ? कभी विचार किया है ? नहीं। करें भी क्यों ? विचार करने का समय भी कहाँ है। कर्म भले ही नहीं जलें, किन्तु धूप व जीव अवश्य जल जावेंगे। ___ अग्नि में धूप खेने से कितने त्रस जीवों का घात होता है यह हम प्रत्यक्ष देखते हैं किन्तु स्वीकार करने में कतराते हैं। तभी तो जल्दी-जल्दी भगवान को देखें न देखें, अग्नि में धूप डाली नहीं कि रवाना हो लिए। भले ही बाहर आकर घन्टों बातें लड़ाते हुए खड़े रहें। यदि सच कहा जाय तो कोई व्यक्ति वहाँ पर उतने भयंकर धुएँ में घन्टे भर रुक जाये तो उसके प्राणपखेरु ही उड़ जायेंगे। एक बात यह भी तो है कि हम अहिंसावादी बने

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