Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 23
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ दोनों छात्र शाम को अपने घर पहुँचे । बस्ता रखा। उनका चेहरा उदास सा होने से पिताजी ने पूछा – आज क्या बात है, तुम दोनों उदास क्यों हो ? कहीं झगड़ा करके आये हो क्या ? दोनों ने कहा – नहीं। पिताजी ने पूछा – तब फिर क्या बात है ? कर्णसिंह ने कहा- गुरुजी ने हमको पीटा और कल आपको विद्यालय में बुलाया है। पिताजी ने कहा – क्यों ? हिम्मतसिंह ने कहा – हम यह नहीं जानते। बस आपको चलना है, नहीं तो हम विद्यालय नहीं जायेंगे। पिता स्कूल नहीं जाना चाहते थे, किन्तु बालक आखिर हठी होते हैं, उनकी हठ के आगे सबको झुकना पड़ता है, अतः पिता को कहना पड़ा – अच्छा चलूँगा। दूसरे दिन पिता के साथ दोनों छात्र देरी से आते हैं। गुरुजी उस समय कक्षा में ही पढ़ा रहे थे। पिताजी व छात्रों ने गुरुजी को प्रणाम किया। पिताजी ने कहा – मास्टर साहब... मुझे क्यों बुलाया है ? गुरुजी ने कहा – आपके लड़के प्रतिदिन यहाँ चोरी करते हैं, आप उन्हें घर पर डाटते-फटकारते क्यों नहीं हो। मदनसिंह बोला - मैं चोरी करता हूँ, मेरा बाप अमरसिंह चोरी करता था, उसका बाप दुर्जनसिंह चोरी करता था, उनका बाप उदयसिंह चोरी करता था । इसप्रकार हमारे खानदान की परम्परा है, उस परम्परा को हमें कायम रखना है, उसे हम नहीं तोड़ सकते हैं। गुरुजी ने कहा – क्यों नहीं तोड़ सकते हो ?

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