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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ पर वज्र पड़ते हैं उसीप्रकार कीचक पर भीम की मुट्ठी पड़ी। परदार में अनुरक्त, कुशील के अभिलाषी कीचक को भीम ने पाप का फल दिखाकर छोड़ दिया। जो दयावंत उज्ज्वल मन हैं, वे ऐसे पापी को भी नहीं मारते, समस्त जीवों पर दयाभाव रखते हैं। वह कीचक पाप का फल प्रत्यक्ष देखकर विषय से विरक्त हुआ। __उसने एक रतिवर्धन नाम के मुनि के पास जाकर मुनिव्रत ले लिया और भावों की शुद्धता से भावना भाकर शुद्धरत्नत्रय का आराधन किया और वन में ध्यानारूढ... हुआ। एक समय एक यक्ष ने उसे देखा तब यक्ष ने विचार किया कि ये द्रोपदी के प्रति कामासक्त थे सो अब देखू कि इनके वैराग्य में कैसी दृढता है ? मुनि की परीक्षा के लिये यक्ष ने अर्द्धरात्रि में द्रोपदी का रूप दिखाया और कामयुक्त उन्मादरूप मीठे शब्द सुनाये, परन्तु वे साधु उसके शब्द सुनकर भी बहरे के समान हो गये, उसका रूप देखकर भी अंध समान हो गये। रूप महामनोहर विलासरूप, परन्तु अंधा कैसे देखे ? महासुन्दर श्रृंगार रस से युक्त शब्द, परन्तु बहरा कैसे सुने ?
कैसे हैं कीचक मुनि ? जिन्होंने इन्द्रिय समूह को वशीभूत किया है, जिनका मन शुद्ध हुआ है। उसी समय कीचक मुनि को केवलज्ञान हुआ। तब यक्षदेव ने उन्हें नमस्कार करके क्षमायाचना की और पूछने लगा कि हे प्रभो... आपका द्रोपदी के ऊपर मोह होने का क्या कारण है ? तब कीचक केवली अपने और द्रोपदी के कितने ही पूर्वभव कहते हैं। हे यक्ष... यह तरंगिणी नाम की नदी, जिसमें वेगवती नाम की नदी का मिलाप हुआ है उस नदी के किनारे महादुष्ट क्षुद्र नाम का एक म्लेच्छ था। वह महापापी, गरीब, जीवों का वैरी और कोई नहीं, मैं ही था, सो एक बार साधु के दर्शन से मेरा मन शान्त हुआ और मैं मरकर उत्तम मनुष्य हुआ। वहाँ मेरा नाम कुमारदेव था और धनदेव (सोमभूति-अर्जुन का जीव) मेरा पिता और सुकुमारी (नागश्री-द्रोपदी का जीव) मेरी माता। उस पापिन ने मुनि