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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९
राजा कीचक और द्रोपदी की भवावलि एक विराट नाम का नगर, वहाँ राजा विराट, उसके सुदर्शना नाम की स्त्री उसके यहाँ पाँच पाण्डव और द्रोपदी गुप्तवेष (अज्ञातवास) में रहे। युधिष्टर तो पण्डित बनकर रहे, भीम रसोईया बनकर रहे, अर्जुन नृत्यांगना बनकर रहे, नकुल-सहदेव घोड़ों को सम्भालने वाले बनकर रहे और द्रोपदी मालिन होकर रही। वे सभी राजा विराट के सन्मान सहित यथाशक्ति सुखशान्ति और सावधानी से गुप्त वेश में रहते हैं। ____एक चूलिका नाम की नगरी, वहाँ चूलिका नाम का राजा, उसकी रानी से उसके एक सौ पुत्र, उन एक सौ भाईयों में कीचक उम्र में भी बड़ा और दुराचार में भी बड़ा था। उसको रूपमद, यौवनमद, चातुर्यमद, शूरवीरता का मद और धन का मद था – ऐसे मदों से वह उन्मत्त था। राजा विराट की रानी सुदर्शना कीचक की बहिन होती थी। कीचक बहिन से मिलने के लिये विराटपुर आया। वह द्रोपदी को देखकर कामासक्त हो गया। पापी ने यह नहीं जाना कि यह महासती है। ___महामानी होने पर भी द्रोपदी में आसक्त हुआ, कीचक दीनता से
अनेक उपाय करके द्रोपदी को लोभ दिखाने लगा, परन्तु वह महासती, जिसको पर-पुरुष तृण समान है ऐसी द्रोपदी ने उस दुष्ट की बलजोरी के कारण उससे झूठी वार्ता करके उसे विश्वास उपजाया और भीम के पास जाकर कीचक की सारी हकीकत कही।
महाधीर भीम रात्रि में द्रोपदी का वेष धारण करके कीचक ने जहाँ संकेत किया था वहाँ एकान्त में गया। महा-कामासक्त वह उसी को द्रोपदी समझकर तुरन्त ही उसके पास आया। जैसे हाथी स्पर्शन इन्द्रिय के वश से होकर गड्डे में गिरने आता है, वैसे ही वह द्रोपदी समझकर भीम के पास आया। भीम ने दोनों हाथों से उसका गला पकड़ा और वहीं जमीन पर पछाड़ दिया। पैरों से मसला, मुस्टिओं का प्रहार किया और जैसे पर्वत