Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 16
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ अतः आप नीचे आ जाइये, मैं स्वयं ऊपर चढ़कर तुम्हें पके-पके मीठे आम खिला दूँगा। यह कहकर वह वृक्ष पर चढ़ गया और चुन-चुनकर एक-एक आम तोड़कर नीचे गिराने लगा। छठा व्यक्ति यह सब कुछ देख रहा था, परन्तु चुप था। क्या बोले, किसे समझाये ? उसकी सन्तोषपूर्ण बात को स्वीकार करने वाला यहाँ था ही कौन ? विद्वान लोग, मूों को उपदेश नहीं देते। एक दिन की बात है कि वर्षा जोर से हो रही थी। एक वृक्ष के नीचे कुछ बन्दर ठिठुरे बैठे थे। वृक्ष पर कुछ बयों के घोंसले थे। वे बये सुखपूर्वक उन घोंसलों में बैठे प्रकृति की सुन्दरता का आनन्द ले रहे थे। बन्दरों की हालत देखकर वे हंसने लगे और बोले कि रे मूर्ख बन्दर ! तुझको ईश्वर ने दो हाथ दिये हैं, फिर भी तू अपना घर नहीं बना सकता। देख, हम छोटेछोटे पक्षी भी कितने सुन्दर घोंसले बनाकर इनमें सुखपूर्वक रहते हैं। क्या तुझे देखकर लज्जा नहीं आती ? बस इतना सुनना था कि बन्दर का पारा चढ़ गया और उसने वृक्ष पर चढ़कर सब बयों के घोंसले तोड़ दिये और उनके अण्डे फोड़ दिये। इसी से ज्ञानी जनों ने कहा है - "सीख ताको दीजिये जाको सीख सुहाय । सीख न दीजिये बान्दरा, बैये का घर जाय॥" - ऐसा सोचकर वह सन्तोषी व्यक्ति कुछ न बोला और पृथ्वी पर पहले से इधर-उधर पड़े हुए कुछ आमों को उठाकर पृथक् बैठ सुखपूर्वक खाने लगा। इस उदाहरण पर से व्यक्ति की इच्छाओं व तृष्णाओं की तीव्रता व मन्दता का बड़ा सुन्दर परिचय मिलता है। पहिला व्यक्ति जो वृक्ष की जड़ पर कुल्हाड़ा चलाने लगा था अत्यन्त निकृष्ट तीव्रतम इच्छावाला था। उसकी कषाय कृष्ण वर्ण की थी अर्थात् वह कृष्ण-लेश्यावाला था।

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