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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ ___जहाँ भी वे गये न्याय सिंह के पक्ष में ही गया और सिंह ने उसे खा लिया। इसलिये भो मित्रो ! तुम्हें भी कुछ विवेक से काम लेना चाहिये। दूसरे की कृतघ्नता को तो तुम कृतघ्नता देखते हो, परन्तु अपनी इस बड़ी कृतघ्नता को नहीं देखते। जिस वृक्ष के आम आप खायेंगे उस पर ही कुठाराघात करते क्या आपका हृदय नहीं काँपता। नीचे उतर आओ भैया, नीचे उतर आओ, मैं तुम्हारे पाँव पड़ता हूँ। मैं स्वयं वृक्ष पर चढ़कर तुम्हें भरपेट आम खिला दूंगा।
वह वृक्ष पर चढ़ गया और आमों के बड़े-बड़े गुच्छे तोड़कर नीचे डालने लगा। यह देखकर दूसरे मित्र से बोले बिना न रहा गया। बोला कि “मित्र ! तुम्हें भी विवेक नहीं है। क्या नहीं देख रहे हो कि इस गुच्छे में पके हुए आमों के साथ-साथ कच्चे भी टूट गये हैं, जो चार दिन के पश्चात् पककर किसी और व्यक्ति की सन्तुष्टि कर सकते थे, परन्तु अब तो ये व्यर्थ ही चले गये, न हमारे काम आये और न किसी अन्य के।
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