Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 20
________________ खरतरगच्छ की उत्पत्ति वि. सं. 1204 में बतायी है। 5. सोमसुन्दरसूरिजी के शिष्य जिनसुन्दरसूरिजी ने वि.सं. 1483 में दीपालिका कल्प' की रचना की थी। उसकी 129 वीं गाथा में खरतरगच्छ की उत्पत्ति का 1204 में बतायी है। देखिये वत्सरैज्दशशतैश्चतुर्भिरधिकैर्गतैः 1204 / भावी विक्रमतो गच्छः ख्यातः खरतराख्यया।।129॥ ये सभी ग्रंथ उपाध्याय धर्मसागरजी के भी 100-125 साल पहले के तपागच्छ के पूर्वाचार्यों के हैं। 6. राजगच्छपट्टावली एवं कडुआमत पट्टावली में भी 'वेदाभ्रारुणकाले' के द्वारा सं. 1204 में ही खरतरगच्छ की उत्पत्ति बताई है। - (विविधगच्छ पट्टावली संग्रह) स्पष्टीकरण 15 वीं शताब्दी के आस-पास खरतरगच्छ के ग्रंथों में 'जिनेश्वरसूरिजी से खरतगरगच्छ की उत्पत्ति हुई', ऐसा प्रचार किया जाने लगा और यह मान्यता बह-प्रचलित हो गयी थी। अपने पूर्वाचार्यों की खरतरगच्छ संबंधी धारणा का ख्याल न होने से उपरोक्त प्रचलित प्रघोष के अनुसार सं. 1511 में 'पं. सोमधर्मगणिजी', सं. 1517 में 'पं. रत्नमंदिरगणिजी' आदि ने 'उपदेशसप्ततिका', 'उपदेशतरंगिणी' आदि ग्रंथों में अभयदेवसूरिजी को खरतरगच्छीय मान लिया तो वह प्रमाण नहीं कहलाता है, क्योंकि उनके पूर्वाचार्यों ने सं. 1204 में ही खरतरगच्छ की उत्पत्ति बतायी है। __ ऐसा ही आत्मारामजी म.सा. आदि के कथन के विषय में भी समझ सकते हैं। जिनपीयूषसागरसूरिजी ने 'जैनम् टु-डे', अगस्त 2016, पृ. 15 में मुनिसुंदरसूिरिजी द्वारा उपदेश तरंगिणी' की रचना की गयी थी, ऐसा लिखा है जो उचित प्रतीत नहीं होता है क्योंकि (जैन सत्य प्रकाश क्र. 139), 'जैन परंपरानो इतिहास' भाग-3, पृ. 164 के अनुसार सं. 1517 में रत्नमंदिरगणिजी ने 'उपदेशतरंगिणी' की रचना की थी। दूसरी बात उपदेश तरंगिणी में खरतरगच्छ या अभयदेवसूरिजी संबंधी कोई बात ही नहीं है। इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /0200

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