Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
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________________ इसलिए ऐतिहासिक लेखों प्रबन्धों और पट्टावलियों में इस प्रकार की अतिशयोक्तियों और कल्पित-कहानियों को स्थान नहीं देना चाहिए। ___ हमने तपागच्छ की छोटी-बड़ी पच्चीस पट्टावलियां पढ़ी हैं और इतिहास की कसौटी पर उनको कसा है, हमको अनुभव हुआ कि अन्यान्य गच्छों की पट्टावलियों की अपेक्षा से तपागच्छ की पट्टावलियों में अतिशयोक्तियों और कल्पित कथाओं की मात्रा सब से कम है और ऐसा होना ही चाहिए, क्योंकि कच्ची नींव पर जो इमारत खड़ी की जाती है, इसकी उम्र बहुत कम होती है। हमारे जैन संघ में कई गच्छ निकले और नामशेष हुए , इसका कारण यही है कि उनकी नींव कच्ची थी, आज के जैन समाज में तपागच्छ, खरतरगच्छ, आंचलगच्छ आदि कतिपय गच्छों में साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकात्मक चतुर्विध जैन संघ का आस्तित्व है, इसका कारण भी यही है कि इनमें वास्तविक सत्यता है। जो भी सम्प्रदाय वास्तविक सत्यता का प्रतिष्ठित नहीं होते, वे चिरंजीवी भी नहीं होते, यह बात इतिहास और अनुभव से जानी जा सकती है। -पं. कल्याणविजयजी गणि ( इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /147 )