Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 164
________________ (4) विक्रम संवत् 1295 में सुमतिगणि ने गणधरसार्धशतक की सं. बृहद्वृत्ति में उल्लेख किया है कि “पश्चाजिनचंद्रसूरिवर आसीद यस्याष्टादशनाममाला सूत्रतोऽर्थतश्च मनस्यासन् सर्वशास्त्रविदः। येनाष्टा(?) दशसहस्रप्रमाणा संवेगरङ्गशाला मोक्षप्रासादपदवी भव्यजजन्तूनां कृता। येन जावालिपुरे दू(ग)तेन श्रावकाणामग्रे व्याख्यानं 'चीवंदणमावस्सय' इत्यादि गाथायाः कुर्वता सिद्धान्तसंवादाः कथितास्ते सर्वे सुशिष्येण लिखिताः शतत्रय-प्रमाणो दिनचर्याग्रंथः श्राद्धानामुपकारी जातः।” ___ (यह पाठ मैंने बडौदा-जैनज्ञानमंदिर-स्थित श्रीहंसविजयजी मुनिराज के संग्रह की अर्वाचीन ह. लि. प्रति से उघृत कर दर्शाया था) ____ भावार्थ :- पीछे (श्रीजिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि के अनन्तर) श्रीजिनचंद्र सूरिवर हुए। सर्वशास्त्रविद् जिसके मन में 18 नाममालाएँ सूत्र से और अर्थ से उपस्थित थीं। जिसने दस हजार गाथा प्रमाण संवेगरंगशाला भव्यजीवों के लिए मोक्ष प्रासाद-पदवी की। जावालिपुर में गए हए जिसने श्रावकों के आगे 'चीवंदणमावस्सय' इत्यादि गाथा का व्याख्यान करते हुए सिद्धान्त के संवाद कहे थे, उन सबको सुशिष्य ने लिख लिए, तीन सौ श्लोक-प्रमाण ‘दिनचर्या' नामक ग्रंथ श्रावकों के लिए उपकारी हो गया। (5) रिक्त संघपुर-जैन मंदिर की भित्ति में लगे हुए प्रायः सं. 1326 (?) के अपूर्ण शिलालेख की नकल स्व. बुद्धिसागरसूरिजी की प्रेरणा से ‘बीजापुर-वृत्तान्त' के लिए मैंने 54 वर्ष पहिले उद्धृत की थी, उसमें यह पद्म है संवेगरङ्गशाला सुरभिः सुरविटपि-कुसुममालेव। शुचिसरसाऽमरसरिदिव यस्य कृतिर्जयति कीर्तिरिव।। भावार्थ- जिसकी (श्रीजिनचंद्रसूरिजी की) कृति संवेगरंगशाला सुगन्धि कल्पवृक्ष की कुसुममाला जैसी और पवित्र सरस गंगानदी जैसी, और उनकी कीर्ति जैसी जयवती है। उनकी परम्परा के चंद्रतिलक उपाध्याय ने वि.सं. 1312 में रचे हुए सं. / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /164 )

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