Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 170
________________ भयके शेषपन से, अत्यन्त दुर्जय दर्शन-मोहनीय के अबलपन से, सुगुरु के उपदेश से अथवा स्वयं कर्म ग्रंथि के भेद से, भारी पर्वत नदी से हरण किये जाते लोगों को नदी-तट का प्रालंब (प्रकृष्ट अवलम्बन) मिल जाय, अथवा रंकजनों को निधान प्राप्त हो जाय, अथवा विविध व्याधि-पीड़ित जनों को सुवैद्य मिल जाय, अथवा कुएँ के भीतर गिरे हुए को समर्थ हस्तावलंब मिल जाय; इसी तरह सविशेष पुण्यप्रकर्ष से पाने योग्य, चिन्तामणि रत्न और कल्पवृक्ष को जीतने वाले, निष्कलंक परम (श्रेष्ठ) सर्वज्ञ-धर्म को पाकर, अपने हितकी ही गवेषणा करनी चाहिए। वह हित ऐसा हो कि, जो अहित से नियम से (निश्चय से) कभी भी, किससे भी, और कभी भी बाधित न हो। वैसा अनुपम अत्यन्त एकान्तिक परम हित (सुख) मोक्ष में होता है, और मोक्ष कर्मों के क्षय से होता है और कर्मक्षय, विशुद्ध आराधना आराधित करने से होता है। इसलिए हितार्थी जनों को आराधना में सदा यत्न करना चाहिए; क्योकि उपाय के विरह से उपेय (प्राप्त करने योग्य साध्य) प्राप्त नहीं हो सकता। आराधना करने के मनवालों को उस अर्थ को प्रकट करने वाले शास्त्रों का ज्ञान चाहिए। इसलिए 'गृहस्थों और साधुओं दोनों विषयक इस आराधना शास्त्र को मैं तुच्छ बुद्धि वाला होने पर भी कहूँगा। आराधना चाहने वाले को चाहिए कि वह मन,वचन काया इस त्रिकरण का रोध करे।' इस आराधना शास्त्र में (1) परिकर्म-विधान (2) परगण-संक्रमण (3) ममत्वव्यच्छेद और (4) समाधि-लाभ नामवालेचार स्कन्ध (विभाग) हैं। पहले (1) परिकर्म-विधान में (1) अर्ह (2) लिङ्ग, (3) शिक्षा, (4) विनय, (5) समाधि, (6) मनोऽनुशास्ति, (7) अनियत विहार, (8) राजा, (9) परिणाम साधारण द्रव्यके 10 विनियोग स्थानों, (10) त्याग, (11) मरणविभक्ति-17 प्रकार के मरणों पर विचार, (12)अधिकृत मरण, (13) सीति (श्रेणी), (14) भावना और (15) संलेखना इस प्रकार के 15 द्वारों को विविध बोधक दृष्टान्तों से स्पष्ट रूप में समझाया है। दुसरे (2) परगण संक्रमण स्कन्ध (विभाग) में (1) दिशा, (2) क्षामणा, (3) अनुशास्ति, (4) सुस्थित गवेषणा, (5) उपसंपदा, (6) परीक्षा, (7) प्रतिलेखना, क(8) पृच्छा, (9) प्रतीज्ञा, (10) इस प्रकार दस द्वारों को विविध दृष्टान्तों से स्पष्टरूप में समझाया है। तीसरे (3) ममत्वव्युच्छेद स्कन्ध (विभाग) में (1) आलोचनाविधान, (2) इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /170

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